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महिलाओं में त्याग स्वभाव और सहनशीलता व्रत बने : कनकप्रभा



गंगाशहर। तेरापंथ महिला मंडल द्वारा मंगलवार को विराट महिला सम्मेलन का आयोजन किया गया। 'संयम से व्यक्तित्व विकासÓ विषय पर व्याख्यान देते हुए साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ने कहा कि जिस व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र में संयम होता है उसमें विकास होता है। नारी एक पवित्र ज्योति है। त्याग उसका स्वभाव और सहनशीलता उसका व्रत है। सहिष्णुता महिला का स्वाभाविक गुण है, लेकिन आजकल सहिष्णुता घट रही है। एक बच्चा भी अपने मन के प्रतिकूल बात को सहन नहीं कर सकता। सहन करने की क्षमता खत्म हो चुकी है। महिलाएं सहनशील बन कर ही परिवार को संस्कारित बनाती हैं। जहां अधिकारों की बात आती है वहां शांति नहीं होती। रामायण व महाभारत का उदाहरण देते हुए कनकप्रभाजी ने कहा कि रामायण हमें कर्तव्यों की प्रेरणा तथा महाभारत हमें हक-हकूक की बात सिखाता है। असंयम से राष्ट्र का पतन होता है। जैन संस्कृति में संयम कण-कण में है। इसलिए जीवन के हर व्यवहार में संयम हो। व्यक्ति को सबसे पहले खाने में संयम रखना होगा। जिस देश में करोड़ों लोग भूखे सोते हैं वहां अन्न का अपमान गलत बात है। विवाह तथा किसी भी समारोह में भोजन की संख्या सीमित हो। कभी जूठा न छोड़ें तथा सप्ताह में एक दिन भोजन न करने का प्रण भी लें। वस्त्रों की सीमा भी निश्चित हो। परिधानों में संयम होना जरुरी है। वस्त्रों से आलमारी भरी होती है फिर लोग संतुष्ट नहीं होते। बिजली-पानी के संयम के बारे में बताते हुए साध्वीप्रमुखाजी ने कहा कि पहले के जमाने में पानी का उपयोग सीमित होता था। परिवार में यदि बहू के हाथ से घी गिर जाता तो कोई बात नहीं लेकिन पानी गिर जाता तो उसे उपालंभ अवश्य मिलता।
आज के प्रवचन में आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि आकाश मंडल में नक्षत्र, ग्रह, तारे सुशोभित होते हैं उन सबके बीच चन्द्रमा उदित होता है तो पूरी रात्रि सब नक्षत्रों के साथ चंद्रमा सुशोभित होता है। इसी तरह आचार्य भी होते हैं। जिस तरह चन्द्रमा की रात्रि में प्रधानता होती है उसी प्रकार धर्मसंघ साधुवर्ग में आचार्यों का बड़ा महत्व होता है। 'सर्वोपरि कौन संघ या संघपतिÓ विषय पर व्याख्यान देते हुए आचार्यश्री ने कहा कि संघ बड़ा होता है व्यक्ति नहीं। व्यक्ति एक इकाई है। समाज बड़ा होता है, व्यक्ति नहीं। समाज हित के लिए व्यक्तिहित गौण कर दिया जाता है। गणि से भी बड़ा गण होता है। गण में श्रावक-श्राविका, साधु-साध्वी होते हैं। वे आचार्य को निवेदन तथा आवेदन कर सकते हैं लेकिन चुनौती नहीं दे सकते। संयम के बारे में बताते हुए आचार्यश्री ने कहा कि संयम से अनेक समस्याओं को पैदा होने से बचाया जा सकता है। व्यापारी को व्यापार द्वारा जनता की सेवा तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करना चाहिए लेकिन इसमें नैतिकता जरुर होनी चाहिए। चिकित्सक, वकील सबको अपने कार्यों में सेवा और नैतिकता को प्राथमिकता देनी चाहिए। जनता में नैतिक मूल्यों का विकास हो इसके लिए संयमी होना आवश्यक है।
सम्मेलन में मंडल की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सूरज बरडिय़ा ने कहा कि आचार्य तुलसी ने लगभग 6 दशक पूर्व महिलाओं में जागृति की अलख जगाई। हमने अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिला दी, बड़ी-बड़ी डिग्रिया प्राप्त कर ली हमारे बच्चों ने लेकिन हम उन्हें अध्यात्म तथा आचरण की शिक्षा नहीं दे रहे। बहुत दुख होता है जब बच्चे जैन होकर भी जय जिनेन्द्र कहने में हिचकिचाते हैं, जैन होकर भी भोजन से पूर्व पांच बार नवकार नहीं बोलते और हृदय तो तब ज्यादा दुखी होता है जब हमारे ही बच्चे आधी रात को मदहोशी की हालत में आते हैं। इसलिए आवश्यकता है संयम की, नैतिक चेतना की। हमारे 14 नियमों का पालन करें, नैतिकता को अपनी दिनचर्या में अपनाएं तब केवल हम नहीं हमारी आने वाली पीढ़ी भी नैतिक श्रावक-श्राविकाएं बनेगी। बरडिय़ा ने कहा कि महिला समाज की धूरी होती है। महिला सम्मेलन होते हैं, संकल्प भी लिए जाते हैं लेकिन एक माह से ज्यादा नहीं टिकते वे संकल्प। हमें महिलाओं को जागृत करना होगा और महिलाएं अपने बच्चों में नैतिकता की अलख जगाए। कन्याओं को प्रेरणा दें, नहीं तो कब बहू वापस चली जाए और कब डोली में भेजी बेटी वापस अपने घर आ जाए। स्वयं को जैन मानते हो तो संयम बरतना होगा और आचरण में नैतिकता लानी होगी।

सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए मुख्य नियोजिका साध्वीश्री विश्रुतविभा ने कहा कि रोटी, पुस्तक और स्त्री ये तीन रत्न की श्रेणी में आते हैं। रोटी व्यक्ति का शारीरिक पोषण करती है, पुस्तक व्यक्ति का मानसिक पोषण और स्त्री समाज व परिवार का पोषण करती है। स्त्री परिवार ही नहीं राष्ट्र निर्माता है। साध्वीश्री ने कहा कि रिश्ते फूल व शूल की तरह होते हैं। शूल रिश्तों को तोड़ते हैं और फूल अपने स्वाभाव से रिश्तों में विकास करता है। रिश्ते तभी पनपते हैं जब परिवार में सम्मान हो एक-दूसरे का, सामंजस्यता हो। जहां समझ का अभाव, सामंजस्यता का अभाव होता है वहां रिश्ते टूट जाते हैं। हिन्दुस्तान पर पाश्चात्य संस्कृति हावी हो रही है। संयुक्त कुटुम्ब प्रणाली भारत की पहचान थी जो अब लुप्त हो रही है। परिवार में सबको साथ में रहना है तो परस्पर बातचीत करें। मोबाइल-इंटरनेट से चिपके रहने और सांस्कृतिक, पारिवारिक गतिविधियों से पीछा छुड़ाने से अकेलापन जन्मता है। परिवार में संयुक्त रूप से रहना है तो विश्वास करना होगा और संदेह को भगाना होगा। संदेहात्मक रिश्ते कभी मजबूत नहीं हो सकते। पिता को पुत्र पर, सास को बहु पर सबको एक-दूसरे पर विश्वास करना होगा। बच्चे क्या सीख रहे हैं, क्या कर रहे हैं तथा उनके मन में क्या चल रहा है इन सबके बारे में वात्सल्यता से एक मित्र बनकर भी माता-पिता को उनसे बातचीत करनी चाहिए। समय देना चाहिए अपने बच्चों को और संस्कारों की शिक्षा भी देनी चाहिए। वहीं बच्चों को भी अपने माता-पिता तथा परिवार के सदस्यों को समय देना चाहिए। उनकी सेवा, उनकी परेशानियों को जानना चाहिए।

बीकानेर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. चन्द्रकला ने कहा कि जैन समुदाय में इतनी स्त्रियां संयम का व्रत लेती है तथा इतनी साध्वियां हैं। इन्हें देखकर यह निश्चित हो जाता है कि इस देश का भविष्य सुरक्षित है। स्त्री एक ऐसी पूंजी होती है जो आचार को बढ़ाती है। आज भी भ्रूण हत्या करके लोग बहुत बड़ा पाप कर रहे हैं।  बालिका जन्म लेती है तो समझो माता-पिता को एक साथी मिल गया है जो कभी उनसे दूर नहीं होती। मां संयम, नैतिकता की मूर्ति होती है। मां के संस्कार ही हमें आगे बढ़ाती है।  प्रो. चन्द्रकला ने कहा कि आचार्य तुलसी तो महान् थे ही लेकिन उनसे भी महान् उनकी मां थी जिसने ऐसी चरित्र आत्मा को जन्म दिया और उन्हें नैतिक आचरण दिए। एक स्त्री अगर शिक्षित होती है तो कई कुलों को शिक्षित करती है। ब्यूटी पार्लर में जाकर चेहरे को निखार सकती हैं पर जो तेज आपके आचरण और संयम से मिलता है वह तेज हमें राष्ट्र में अपनी पहचान बनाने का अवसर देता है।

विराट महिला सम्मेलन में जिला कलक्टर सुश्री आरती डोगरा तथा विधायक सुश्री सिद्धि कुमारी ने भी हिस्सा लिया। कार्यक्रम की शुरुआत महिला मंडल ने गीतिका से की तथा स्वागत शारदा डागा ने किया। कार्यक्रम का संचालन संतोष बोथरा ने किया तथा मधु छाजेड़ ने आभार व्यक्त किया।

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