मर्यादा पत्र का किया वाचन
आचार्यश्री
महाश्रमण ने मर्यादा पत्र का वाचन किया। यह पत्र आचार्य भिक्षु ने 1859
में मुनिश्री भारमलजी को अपना उत्तराधिकारी घोषित करते हुए एक मर्यादा पत्र
लिखा था। महाश्रमणजी ने इस ऐतिहासिक पत्र की हिन्दी प्रतिलिपि का वाचन
करते हुए कहा पत्र के अनुसार चातुर्मास कहां करने हैं, शिष्य का गुरु के
प्रति कर्तव्य का उल्लेख किया गया है। पत्र में लिखा गया है कि अपने आचार्य
की आज्ञा के बिना कुछ भी नहीं करना है। आज्ञा और सेवा का महत्व दिया गया
है। स्वयं का शिष्य-शिष्याएं न बनाएं। हम अपनी मर्यादाओं के प्रति सचेत
रहें। संघ की मर्यादाओं के प्रति जागरुक रहें तभी विकास की दिशा में आगे
बढ़ सकते हैं।
हाजरी का दिखा अनूठा नजारा
मर्यादा महोत्सव
के तीसरे दिन आचार्यश्री महाश्रमणजी के समक्ष सभी साधु-साध्वियों ने
कतारबद्ध खड़े होकर हाजरी दी। दीक्षाक्रम से खड़े साधु-साध्वियों को
आचार्यश्री ने संकल्प दिलाए। सभी पंक्तिबद्ध दीक्षाक्रम में खड़े
साधु-साध्वियों ने धर्मसंघ के एक गुरु की आज्ञा में रहने का संकल्प लिया।
संतों की अपने गुरु के प्रति आज्ञा व समर्पण देख हर कोई अभिभूत हो रहा था।
कार्यक्रम के अंत में उपस्थित तेरापंथ धर्मसंघ के
अनुयायियों को संकल्प दिलाया गया कि उन्हें खान-पान आदि में मर्यादा रखनी
होगी। सामयिक का संकल्प दिलाते हुए गुरुदेव ने कहा कि सबको संयम का पालन
करना चाहिए।
संघ को किया नमस्कार
आचार्य
महाश्रमण ने उपस्थित सभी साधु-साध्वियों को खड़े होकर अभिवादन किया।
उन्होंने कहा कि वृद्ध साधु-साध्वियां एवं उपस्थित सभी साधु-साध्वियों को
मेरा नमस्कार। मैं आपसे मंगलभावना का आशीर्वाद चाहता हंू। महाश्रमणजी ने
कार्यक्रम के दौरान सभी साधु-साध्वियों को खमतखामणा (क्षमा-याचना) भी की।
उपस्थित सभी जनों ने महाश्रमणजी की इस विनम्रता पर ú अर्हम् का उद्घोष
किया। उन्होंने कहा कि राजस्थान में इस मर्यादा महोत्सव के बाद फिर कब आने
का अवसर प्राप्त हो यह अभी बताना संभव नहीं लेकिन कई वर्षों तक तो राजस्थान
नहीं आना होगा। आचार्यश्री ने 2016 का मर्यादा महोत्सव बिहार के किशनगंज
में रखने की तथा 2017 का मर्यादा महोत्सव सिलिगुडी में करने की घोषणा की।
उन्होंने कहा कि वे दिल्ली के बाद कानपुर की ओर फिर ग्वालियर विहार का भाव
है।
सूचना एवं मीडिया प्रभारी
धर्मेन्द्र डाकलिया ने कहा कि आचार्यश्री महाश्रमण शुक्रवार को सुबह 8 बजे
आशीर्वाद भवन से प्रस्थान कर तेरापंथ भवन पहुंचेंगे तथा नियमित व्याख्यान
लगभग 9.30 बजे शुरू हो जाएगा। डाकलिया ने बताया कि महाश्रमणजी ने स्वयं
द्वारा रचित 'भैक्षव शासन नंदनवन की सुषमा शिखर चढ़ाएं हमÓ गीत प्रस्तुत
किया। साध्वीवृंद ने 'मर्यादाएं संघ को बलवान बनाती हैंÓ गीतिका प्रस्तुत
की। मुनिश्री जतनमल स्वामी को शासनश्री की उपाधि दी। स्व. धनराज जी बोथरा
को शासनसेवी स्व. धनराज बोथरा की उपाधि प्रदान की। एक अनुमान के आधार पर आज
लगभग 30 हजार लोग इस 150वें वृहद मर्यादा महोत्सव के साक्षी बने।
कार्यक्रम की सम्पन्नता के लगभग 45 से 50 मिनट तक तुलसी समाधिस्थल के
निकासी गेट से एक जैसे चलते रहे।
चातुर्मास की हुई घोषणा
गुरुवार
को आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित साधु-साध्वियों को चातुर्मास के आदेश
दिए जिनमें साध्वीश्री जयश्री को बीकानेर, साध्वीश्री तेजकुमारी को
उदासर, शासनगौरव साध्वी राजीमतीजी को नोखा एवं मुनिश्री राजकरण, मुनिश्री
नगराज को फिलहाल गंगाशहर में ही रहने के आदेश दिए हैं।
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