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विवेकपूर्ण सद्पुरुषार्थ करने वाला भाग्यशाली : आचार्य महाश्रमण


गंगाशहर। 150वें मर्यादा महोत्सव के तृतीय दिवस गुरुवार को नैतिकता के शक्तिपीठ आचार्य तुलसी समाधि स्थल के प्रेक्षाध्यान प्रांगण में 12:15 बजे कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। मुनिश्री दिनेश कुमार ने जयघोष के साथ मंगल गीत प्रस्तुत कर कार्यक्रम की शुरुआत की। महोत्सव में आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने व्याख्यान में कहा कि हमारी दुनिया में वह आदमी भाग्यशाली होता है जो विवेकपूर्ण सद्पुरुषार्थ करता है। सम्यक् पुरुषार्थ तपस्या में, संयम में होता है। आचार्य भिक्षु पराक्रमी पुरुष थे उनमें श्रद्धा का भाव विशिष्ट था। आचार्यश्री ने कहा कि जो दया देह को पोषण देती है, जिस दान से देह को सहायता मिले वह लौकिक और जो दान, दया आत्मा का पोषण करती है वह लोकोत्तर कहलाता है। एक साधु किसी गृहस्थ को ज्ञान का दान, अध्यात्म की शिक्षा का दान देता है तो वह लौकिक और यदि गृहस्थी किसी साधु को शुद्ध आहार या उसकी सेवा करता है तो वह लोकोत्तर होगा। भूखे को भोजन करवाने से उसका पेट भरता है उसकी आत्मा को तृप्ति मिले यह जरूरी नहीं। आचार्य भिक्षु ने दान, दया और अनुकम्पा आदि विषयों पर अपना मन्तव्य प्रस्तुत किया था। आचार्य भिक्षु ने क्रांति की और तेरापंथ संघ का सूत्रपात किया। भिक्षु ने मर्यादाओं का निर्माण किया तथा जयाचार्य ने उन मर्यादाओं को महोत्सव का रूप दिया। 
मंत्री मुनि सुमेरमल स्वामी को गुरुवार को दीक्षा लिए 72 वर्ष पूर्ण हो गए। अपने व्याख्यान में मंत्री मुनि सुमेरमल स्वामी ने कहा कि जो मर्यादा के साथ रहता है वह व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। जिस संस्थान, समाज, संगठन में संविधान हो और संविधान के प्रति आदर हो तथा संविधान के प्रति निष्ठा और समर्पण हो तो वह संगठन, संस्था चिरजीवी रहती है। मर्यादा के प्रति निष्ठा, श्रद्धा के प्रति निष्ठा आवश्यक है। जिस संघ में, धर्म संगठन में श्रम की प्रतिष्ठा और संघ नायक के प्रति निष्ठा भरी होती है उस संघ का कोई बाल बांका नहीं कर सकता। तेरापंथ धर्म संघ की यह विशेषता है। धर्म संघ का सौभाग्य है कि भिक्षु से लेकर आज महाश्रमण जैसे आचार्य हमें प्राप्त हुए। हम भाग्यशाली हैं कि कलयुग में भी हमें ऐसा धर्मसंघ मिला है।
साध्वीप्रमुख कनकप्रभा ने अपने उद्बोधन में कहा कि जहां एक आचार्य का नेतृत्व है, एक आचार परम्परा है ऐसा तेरापंथ धर्म विश्व में विजय को धारण करता है। लगभग ढाईसौ वर्ष पूर्व तेरापंथ धर्म संघ का सूत्रपात हुआ। जिसमें अनुशासन और समर्पण की धारा है। ऐसा धर्मसंघ जो मर्यादाओं को आधार मानकर चलता है। एक गुरु की आज्ञा की राह पर चलने वाले साधु-साध्वियों, श्रावक-श्राविकाएं जब समस्या से घिर जाती हैं तो गुरु ही उनका मार्गदर्शन करता है। दीपक से लेकर आकाश तक जितनी वस्तुएं हैं सब मर्यादित हैं। तेरापंथ धर्म संघ मर्यादाओं के आधार पर चल रहा है। सत्य के प्रति निष्ठाशील रहें, अहंकार का कभी बोध न आए। अहंकारी कभी सफल साधक नहीं बन सकते।



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