बीकानेर।
शुक्रवार सुबह करीब साढ़े सात बजे आचार्यप्रवर महाश्रमणजी मुनिवृंदों के
साथ नाहटा भवन से प्रस्थान किया। महाश्रमणजी का पानमल राजेन्द्र कुमार
पारसमल नाहटा भवन परिवार के यहां गुरुवार को तेरापंथ भवन से आगमन हुआ था।
मझले-मझले कदमों से महाश्रमणजी आगे बढ़ते हुए पीबीएम अस्पताल परिसर में
पहुंचे जहां आचार्य तुलसी कैंसर चिकित्सा एवं अनुसंधान केन्द्र परिसर में
कोबाल्ट केन्द्र के लोकार्पण तथा प्रेक्षा कॉटेज एवं आचार्य तुलसी बॉन मेरो
ट्रांसप्लांट यूनिट की भूमि पर मंगलपाठ के बाद आयोजित अभिनन्दन कार्यक्रम
में अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। शिष्य को गुरु से ज्ञान मिलता है और
गुरु को शिष्य से सेवा मिलती है। अध्यापक विद्यार्थी को शिक्षा देता है और
विद्यार्थी द्वारा अध्यापक को शुल्क उपलब्ध करवाया जाता है। डॉक्टर मरीज के
लिए भगवान का रूप होता है। महाश्रमणजी ने 'डॉक्टर शरणं गच्छामिÓ कहते हुए
कहा कि स्वास्थ्य बिगडऩे पर हम डॉक्टर के पास जाते हैं और वह हमारे शारीरिक
कष्ट को मिटा देता है। डॉक्टर की शरण में कई मरीज आते हैं और डॉक्टर कइयों
की शारीरिक पीड़ा दूर करते हैं। उन्होंने कहा कि मौत को कोई रोक नहीं सकता
यह सत्य है। संसार में सब प्राणी जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता।
इसलिए हिंसा न करें और अहिंसा के मार्ग पर चलें। आदमी भयभीत होता है दु:ख
के डर से, कि कहीं कोई दु:ख न आ जाए। जन्म लेना भी दु:ख है, बुढ़ापा भी
दु:ख है, मृत्यु भी दु:ख है। जब जवानी चली जाती है और बुढ़ापा आ जाता है
तब दिखना कम, हाथों में कंपन आना, घुटनों में तकलीफ तथा दांत भी टूट जाते
हैं। आचार्य तुलसी अध्यात्मिक चिकित्सक थे। तुलसी अध्यात्म का रास्ता बताते
थे और अणुवत की दवाई देते थे। अणुव्रत की दवाई से तात्पर्य है ईमानदारी,
नशा मुक्ति, परिग्रह की सीमा और संयम। आचार्यश्री ने कहा कि शरीर की
चिकित्सा डॉक्टर करते हैं और आत्मा की चिकित्सा धर्मगुरु करते हैं। डॉक्टर
आपके शरीर को स्वस्थ कर सकता है, लेकिन धर्मगुरु आपकी आत्मा को शुद्ध करता
है। आत्मा की चिकित्सा विशेष महत्व रखती है। शरीर सब का छूटेगा। शरीर
अस्थाई और आत्मा स्थाई तथा हमेशा रहने वाला तत्व है। शरीर का ध्यान तो रखना
ही चाहिए साथ-साथ आत्मा का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। प्रेक्षाध्यान से
आत्मकल्याण हो सकता है। आचार्यश्री ने कहा कि गुरुदेव तुलसी के नाम से
जुड़ा यह चिकित्सालय इतना विशाल हो गया है। कैंसर जैसे जटिल रोग का इलाज
यहां पर किया जाता है। यहां आने वाले सबके मुख पर तुलसी का नाम होता है।
तुलसी की ही कृपा है जो इस अनुसंधान केन्द्र ने पूरे एशिया में अपनी पहचान
बनाई है। आचार्य महाश्रमण ने कहा कि डॉक्टर का लौकिक धर्म सेवा है अत:
व्यवहार सद्भावनापूर्ण हो। डॉक्टर करुणापूर्ण व्यवहार रखे, संवेदनशीलता रखे
वह रोगी के इलाज में लाभकारी होगा। उन्होंने कहा कि डॉक्टर का व्यवहार
लोगों को सुकून देता है। अणुव्रत के अनुभवों को इलाज में इस्तेमाल करें तो
शारीरिक और मानसिक दोनों कष्टों से छुटकारा मिलेगा।
इससे पूर्व सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज के डॉ. के.सी. नायक ने
कहा कि हमारे किस जन्म के भाग्य हैं कि हमें आपके चरणों का आशीर्वाद मिला
है। आचार्य तुलसी रीजनल कैंसर अनुसंधान एवं चिकित्सा केन्द्र एशिया का सबसे
बड़ा अस्पताल है। यहां अमृतवचन कहकर हम सभी को महाश्रमणजी ने कृतार्थ किया
है। कैंसर सेंटर के निदेशक डॉ. एम.आर. बरडिय़ा ने कहा कि यहां कोटेज की
सख्त आवश्यकता थी। दानदाताओं ने यह कार्य करके मरीजों को सुविधा प्रदान की
है। डॉ. आर.ए. बम्ब ने कहा कि कैंसर ट्रीटमेंट में यह कार्य माइल स्टोन की
तरह होगा और आगे भी हम सहयोग की अपेक्षा रखते हैं। डॉ. अमीलाल भट्ट व डॉ.
वी.बी. सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए। आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान
के सहमंत्री तथा चिकित्सा प्रभारी जेठमल बोथरा ने कहा कि गत 16 वर्षों से
इस सेंटर से जुड़ा हंू और गुरुदेव का आशीर्वाद है कि इसका विकास हुआ है।
कार्यकर्ताओं तथा सदस्यों का सहयोग एवं दानदाताओं का आभार जिसके बिना यह
संभव नहीं था। प्रेक्षाध्यान के शिक्षक संजू लालाणी व धीरेन्द्र बोथरा ने
बताया कि नियमित रूप से योग व प्रेक्षाध्यान की कक्षा लगाई जाती है जिसमें
ध्यान, प्राणायाम, कायोत्सर्ग व अनुप्रेक्षाओं के प्रयोग होते हैं। लगभग 13
माह से प्रेक्षाध्यान की कक्षाएं चल रही हैं।
आचार्य तुलसी
रीजनल कैंसर चिकित्सा एवं अनुसन्धान केन्द्र, प्रिंस बिजय सिंह मेमोरियल
अस्पताल, बीकानेर, सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज एवं आचार्य तुलसी शांति
प्रतिष्ठान के संयुक्त तत्वावधान में आचार्यश्री महाश्रमणजी का अभिनन्दन
कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम से पूर्व आचार्य महाश्रमणजी रीजनल
कैंसर सेंटर में पधारे तथा कोबाल्ट कक्ष के लोकार्पण पर मंगल पाठ सुनाया।
उन्होंने कैंसर सेंटर में बने लीनियर एक्सीलेटर कक्ष का अवलोकन किया।
आचार्य तुलसी
जन्म शताब्दी वर्ष की अमिट यादगार के रूप में पीबीएम एवं मेडिकल कॉलेज
द्वारा आवंटित की गई भूमि पर बनने वाले आचार्य तुलसी बॉन-मेरो ट्रांसप्लांट
यूनिट के लिए महाश्रमणजी ने मंगल पाठ सुनाया तथा इस प्लांट की पूरी
जानकारी डॉ. के.सी. नायक एवं डॉ. एम.आर. बरडिय़ा ने दी। उल्लेखनीय है कि
प्राचार्य मेडिकल कॉलेज ने 12 फरवरी को इस भूमि को आवंटित करते हुए पत्र
आचार्य तुलसी शांति प्रतिष्ठान को सौंपा था। इस अवसर पर चार डीलक्स
प्रेक्षा कॉटेज हेतु भी मंगल पाठ सुनाया गया। इन कॉटेजों के निर्माण में
खर्च होने वाली राशि के लिए दानदाताओं स्व. श्रीमती बन्नी देवी सियाग,
सुन्दरलाल डागा परिवार [माइन्स ऑनर], भंवरलाल माणकचन्द श्रीश्रीमाल तथा एक
गुप्त दानदाता ने अपनी स्वीकृति भी प्रदान कर दी।
कार्यक्रम में
बीकाजी ग्रुप के शिवरतन अग्रवाल, शिवकिशन अग्रवाल, सुमेरमल दफ्तरी, डॉ.
पी.सी. तातेड़, जतन दूगड़, कन्हैयालाल फलौदिया, हंसराज डागा, महावीर रांका,
अनोपचन्द बोथरा, किशनलाल बोथरा, शांतिलाल सुराना, विमलसिंह चौरडिय़ा, डॉ.
साधना जैन सहित अनेक चिकित्सक, सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज विद्यार्थी, सदस्य
एवं गणमान्यजन उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन जैन लूणकरण छाजेड़ ने किया
तथा आभार ज्ञापन कैंसर विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अजय शर्मा ने किया।
सूचना एवं मीडिया
प्रभारी धर्मेन्द्र डाकलिया ने कहा कि पानमल राजेन्द्र कुमार पारसमल नाहटा
परिवार को सेवा का अवसर मिला। डाकलिया ने कहा कि आचार्य प्रवर पीबीएम
अस्पताल, सादुलगंज, जेएनवी होते हुए उदासर पहुंचे जहां वे रात्रि विश्राम
करेंगे तथा 16 फरवरी को उदासर विहार करके पनपालसर, 17 को राणीसर तथा 18 को
रुणिया बास पहुंचेंगे।
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