गंगाशहर। 4 फरवरी. 150वें
मर्यादा महोत्सव के इस अवसर पर महाश्रमणजी ने साधु-साध्वियों को सेवा
केन्द्र का दायित्व सौंपा। लाडनूं सेवा केन्द्र के लिए साध्वीश्री
भाग्यवती, बीदासर सेवा केन्द्र के लिए साध्वीश्री सत्यप्रभा, गंगाशहर सेवा
केन्द्र के लिए साध्वीश्री चन्द्रकला व साध्वीश्री पुण्यप्रभा,
श्रीडूंगरगढ़ के लिए साध्वीश्री उज्ज्वलरेखा, राजलदेसर के लिए साध्वीश्री
कुन्दनप्रभा को सेवा केन्द्र का दायित्व सौंपा। वहीं साधुओं के लिए छापर
सेवा केन्द्र के लिए मुनिश्री सुरेश कुमार, जैन विश्व भारती के लिए
मुनिश्री हिमांशु को सहव्रती संत का दायित्व सौंपा।
सेवा ही परम धर्म : आचार्यश्री महाश्रमण
एक-दूसरे से जोडऩे का साधन है सेवा। सेवा एक ऐसा ऐसा ग्रंथ है जिसे वह
व्यक्ति पढ़ सकता है जिसमें सेवा का भाव है। परम धर्म के रूप में सेवा की
पहचान है। दान भी सेवा का अंग है। अगर तुम साधु को दान देते हो तो तुम्हें
धर्म का लाभ मिलता है और गरीबों को, असहायों को और जरुरतमंदों को दान देते
हो तो श्रेष्ठ दयालु बनते हो। दूसरों को देने से जो संतोष मिलता है वह खुद
के खाने से नहीं मिलता। उक्त प्रवचन मंगलवार को आचार्यश्री महाश्रमणजी ने
आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी द्वितीय चरण के छठे दिवस एवं 150वें मर्यादा
महोत्सव के अवसर पर नैतिकता के शक्ति पीठ तुलसी समाधि स्थल के प्रांगण
शांति प्रतिष्ठान में कहे। महाश्रमणजी ने कहा कि यदि गरीबों को दान दोगे तो
सेवा, मित्रों को दान दोगे तो प्रेम में वृद्धि होगी और दुश्मन को दान
दोगे तो दुश्मनी नष्ट होगी। दान किसी को भी दो फल जरुर मिलता है। धन्य हैं
वे युवा साधु-साध्वी जो अपने वृद्ध साधु-साध्वियों की सेवा करते हैं। इनकी
सेवा भावना इतनी पक्की होती है कि अपने आचार्य द्वारा बताए गए इंगित सेवा
केन्द्र में जाकर सेवा करते हैं। साध्वियां तो सेवा की प्रतिमूर्ति हैं ही
साधु भी इस क्षेत्र में अग्रणी हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत
'सुगुरु को वंदन शत-शत बारÓ मंगलाचरण एवं जयघोष के साथ की। शांति
प्रतिष्ठान के महामंत्री आसकरण पारख ने अभिनन्दन किया तथा हीरालाल मालू एवं
विनोद चौरडिय़ा ने महाश्रमण जी को नौ पुस्तकें भेंट की।
मुख्य नियोजिका
विश्रुतविभा ने कहा कि सेवा एक महान् कार्य है। इससे व्यक्ति आध्यात्मिक
लाभ और व्यावहारिक लाभ प्राप्त करता है। सेवा करने वाला व्यक्ति शारीरिक
आरोग्य और मानसिक शांति को प्राप्त करता है। साध्वी संकल्पश्री, साध्वीश्री
मृदुलायशा, साध्वीश्री पावनप्रभा, साध्वीश्री सुमंत, साध्वीश्री विनीतयशा,
साध्वीश्री विद्यावती, साध्वीश्री निर्मलप्रभा, साध्वीश्री कीर्तिप्रभा,
साध्वीश्री मयंकप्रभा सहित अनेक साध्वियों ने अपने वक्तव्य कहे। इसी क्रम
में मुनिश्री परमानन्द, मुनिश्री मुकुल कुमार, मुनिश्री प्रशांत कुमार,
मुनिश्री जिनेश कुमार, मुनिश्री पीयुष कुमार व मुनिरी आलोक कुमार ने अपने
विचार रखे।
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