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आचार्य महाश्रमणजी द्वारा मर्यादा महोत्सव पर प्रदत्त निर्देश



गंगाशहर. ०६ फरवरी. मर्यादा महोत्सव के तीसरे दिन महाश्रमणजी ने उपस्थित समस्त साधु-साध्वियों को कहा कि साधु के पास ज्यादा उपकरण नहीं रहने चाहिए। आवश्यकता से अधिक उपकरण हमारे लिए बोझ बन जाते हैं। खासतौर पर विहार के समय तो बहुत सीमित उपकरण साथ में रखने चाहिए। ध्यान रहे कि एक साधु के पास एक बैग से ज्यादा उपकरण न रहे। काशीद का चातुर्मास के दौरान त्याग रखें। विहार में आप काशीद को साथ ले सकते हैं। आलू जमीकंद में आता है इसलिए इसका प्रयोग न करें। साधु लोग जहां लम्बा प्रवास करें अर्थात् दो-तीन दिन रहना पड़े जहां वहां सांसारिक स्त्रियों के चित्र न लगे हो और यदि कम समय रहना हो तब तो कोई खास बात नहीं। साध्वियों के लिए भी यही व्यवस्था है। साध्वियों को जहां प्रवास करना हो वहां सांसारिक पुरुषों का चित्र न हो। महाश्रमणजी ने कहा कि सेवा का क्रम जो बांधा गया है वह अब हटा दिया गया है। अब सेवा जो भी चाहे कर सकता है। तीन चाकरी का कर्जा हमारे ऊपर रहता है उसको अवश्य पूरा करें। विहार के दौरान ध्यान रखें कि मार्बल, नमक अथवा किसी भी फैक्ट्री में जाकर मंगल पाठ न सुनाएं। सप्ताह में पांच शुद्ध सामायिक अवश्य करें। साधु-साध्वियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि कवरयुक्त कोई खाने की वस्तु न लें और श्रावक-श्राविका भी ध्यान रखें की साधु-साध्वियों को कवरयुक्त या कागज से लिपटा कोई भी खाने का पदार्थ गोचरी में न दें। गोचरी के प्रति जागरुकता रखें। हमें विहार के दौरान गांवों में गोचरी लेनी चाहिए चाहे जैन हो या जैनेत्तर किसी से भी ले सकते हैं लेकिन गोचरी विधिवत् हो। चिकित्सा संबंधी कोई समस्या हो तो पहले तेरापंथी सभा के सदस्यों-अधिकारियों को अवगत करवाएं वो स्वयं व्यवस्था देखेंगे यदि वे नहीं करते हैं तो फिर मुझसे सम्पर्क साधा जाए। बेहोशी की हालत में कभी संथारा नहीं पचकाना चाहिए। अवस्था आ गई हो तो स्वयं संथारे का आग्रह करें। 
समणश्रेणी को निर्देश देते हुए कहा कि भिक्षा में वाहन के प्रयोग की सीमा हो। दो किमी तक यदि भिक्षा लेनी हो तो वाहन का प्रयोग न करें इसके बाद चाहें तो वे वाहनप्रयोग कर सकती हैं। भिक्षा के अलावा भी यदि कहीं बाहर जाना हो तो दो किलोमीटर तक की यात्रा में वाहन का प्रयोग हर्गिज न करें। समणश्रेणी यदि टीवी पर प्रवचन देखना चाहें तो वे एक दायरे में रहकर अवश्य टीवी पर प्रवचन देख सकते हैं। श्रावक-श्राविकाओं को जैन सिद्धान्त गीतिका को कंठस्थ करने का आदेश दिया।

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