गुरु का कष्ट शिष्यों का कष्ट होता है : महाश्रमण
बीकानेर।
अगर साधु स्वाध्याय नहीं करता है, स्वाध्याय नहीं करता है केवल व्यर्थ
वार्ताएं करता रहता है तो उसका संयमरूपी पौध विनाश को प्राप्त हो सकता है।
आचार्य तुलसी ने बहुत स्वाध्याय किया और आगमों का अध्ययन किया था। उक्त
विचार आचार्यश्री महाश्रमण ने अपने निर्धारित विषय 'बलिदानों की अमर कहानीÓ
विषय पर शुक्रवार को तेरापंथ भवन में व्याख्यान के दौरान कहे।
आचार्यश्री ने कहा कि
आचार्य भिक्षु का जीवन बलिदानों की कहानी कहता है। आचार्य भिक्षु ने आचार्य
रघुनाथ महाराज से दीक्षा ली थी। भीखणजी नाम से प्रसिद्ध रहे आचार्य
भिक्षु रघुनाथजी के शिष्य थे। गुरु के शिष्य तो अनेक हो सकते हैं पर सभी
शिष्य एक समान हों ये कोई जरुरी नहीं। इसी तरह भीखणजी भी अपने गुरु के
आज्ञाकारी शिष्य थे। गुरु का कष्ट शिष्य का कष्ट होता है। शिष्य गुरु के
पास आते हैं तो गुरु उनके मस्तक पर आशीर्वाद रूपी हाथ रखता है। यदि ऐसा न
हो तो शिष्यों को शोध करना चाहिए कि गुरु का आशीर्वाद उन पर क्यों नहीं है।
तेरापंथ धर्म संघ का सूत्र पात करने वाले आचार्य भिक्षु ने अपने जीवन में
खूब बलिदान दिए हैं। संघर्षों एवं आचार निष्ठा का ही परिणाम था तेरापंथ
धर्म संघ का स्थापना होना।
इससे पूर्व मंत्री मुनि
सुमेरमल स्वामी ने कहा कि जो व्यक्ति उपयोगी बनने का क्रम बना लेता है वह
परिवार में, समाज में भारभूत नहीं होता। समाज में रहने वाला व्यक्ति समाज
से लेता भी है और समाज को देता भी है। पैदा होने के बाद परिवार से, फिर
विद्यालय से तथा गांव-समाज से लेता ही लेता है और सक्षम होने के बाद जब
देने लगे तो उसकी उपयोगिता सिद्ध होती है। तुम्हारी उपयोगिता तुम्हारे तक
सीमित रही तो तुमने अपनी उपयोगिता को व्यापक नहीं बनाया। धर्म के प्रति
जागरुकता, संयम के प्रति जागरुकता रहनी चाहिए। जब कभी धनी बन जाएं, अधिक
पैसा आ जाए तो संयम को छोडऩा नहीं चाहिए। धनी होने पर भी संयम और त्याग की
भावना को बराबर बनाए रखना चाहिए। आदमी धन से वैभव का प्रदर्शन करता है।
प्रदर्शन करके अपने दबदबे का दिखावा न करें। कोई भी पारिवारिक कार्यक्रम हो
तो उसमेंं सादगी की झलक हो। आगन्तुक भी कहें कि कितना सादगीमय कार्यक्रम
था।
कार्यक्रम में आचार्यश्री
महाश्रमणजी के सान्निध्य में ने शासनश्री राजकुमारीजी की स्मृति सभा का भी
आयोजन किया गया। आचार्यश्री ने कहा कि वे संघ में दीक्षापर्याय में सबसे
बड़ी साध्वी थीं। लगभग 85 वर्ष का संयम पर्याय थी। उनकी स्मृति में चार
लोगस्स का ध्यान हुआ तथा कन्या मंडल उदासर व तिलोकचन्द व कमल महनोत ने
गीतिका प्रस्तुत की।
सूचना
एवं मीडिया प्रभारी धर्मेन्द्र डाकलिया ने बताया कि आचार्यश्री सुबह 8 बजे
आशीर्वाद भवन से विहार कर तेरापंथ भवन पहुंचे। शुक्रवार सुबह तेज सर्दी
तथा अत्यधिक ठंडी हवा चलने के बावजूद भी आचार्यश्री के साथ में हजारों
श्रद्धालु जुलूस रूप में तेरापंथ भवन पहुंचे।
0 Comments
Leave your valuable comments about this here :