गंगाशहर, ०५ फरवरी. मर्यादा
महोत्सव कार्यक्रम में आए डॉ. मुरलीमनोहर जोशी ने कहा कि जैन समाज को
अल्पसंख्यक दर्जा मिला है, लेकिन महावीर और वीर अल्प कैसे हो गए यह चिंता
का विषय है। देश में बड़े-बड़े चिकित्सालय, धर्मशालाएं, सेवा केन्द्र तथा
निर्धनों के लिए श्रेष्ठ सेवा देने वाला जैन समाज अल्पसंख्यक कैसे हो सकता
है। डॉ. जोशी ने महाश्रमणजी से कहा कि वे जैन समाज को सीख दें कि जैन
अल्पसंख्यक नहीं हो सकते। जो इस देश में रह रहा है, कमा रहा है और जीवनयापन
कर रहा है वह अल्पसंख्यक कैसे हो सकता है। हम सब एक देश के हैं। सर्वधर्म
सद्भाव से रहें। अल्पसंख्यक बहुसंख्यक का भेद मिटाकर रहें। हमारा यही घोष
हो कि विश्व में एक आध्यात्मिक समाज की रचना हो। इसके बाद महाश्रमणजी ने
अल्पसंख्यक पर चर्चा करते हुए कहा कि अल्पसंख्यक धारा संविधान से हटा देनी
चाहिए। ऐसी धारा को निकाल दिया जाए तो सही रहेगा। सिर्फ जैन समाज के लिए ही
नहीं सब जाति वर्ग के लिए इसे हटा देनी चाहिए। साधु को तो इस धारा से कोई
लाभ नहीं लेना, लेकिन धारा रहेगी तो श्रावक इसका लाभ उठाने के लिए लालायित
रहेंगे। श्रावक का स्वार्थ होता है कि उसे कोई फायदा मिले। समाज के स्तर पर
उनका चिंतन है, समाज की भावना है तो उसे रोका नहीं जा सकता और रोकना भी
नहीं चाहुंगा। संभव हो तो इस धारा को ही हटा दिया जाए।
जब देश भटकता है तब ऐसे महापुरुष अवतरित होते हैं : डॉ. जोशी
पूर्व
केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ. मुरलीमनोहर जोशी ने कहा कि तुलसी से
मेरा पहला संपर्क विश्व हिन्दू परिषद धर्म सम्मेलन में हुआ। उन्होंने जो
कुछ किया वह मानव समाज कल्याण के लिए अद्वितीय योगदान है। जब देश भटकता है
तब ऐसे महापुरुष अवतरित होते हैं। डॉ. जोशी ने कहा कि मर्यादाओं पर
ब्रह्मांड टिका है। सूर्य अपनी मर्यादा छोड़ दे, पृथ्वी अपनी मर्यादा छोड़
दे तथा नदियां अपनी मर्यादा छोड़ दे तो सब नष्ट हो जाएगा। मर्यादा है तो
जीवन है। बातचीत में भी मर्यादा जरुरी है अन्यथा बड़े-बड़े कांड हो सकते
हैं। मर्यादा ऐसा सूत्र है जिसको पकड़े बिना न तो आप चल सकते हैं और न ही
आपका विकास हो सकता है। मर्यादाहीनता के कारण विश्व में संकट है। कोई कोयले
भंडार, कोई तेल के भंडार का अमर्यादित उपभोग कर रहा है। मर्यादित उपभोग
करने से हमारा भी भला और आने वाली पीढ़ी भी उपभोग कर सकेगी। हमारी पृथ्वी
सीमित है, हमारे उपभोग का भंडार सीमित है लेकिन जनसंख्या बढ़ती जा रही है,
इसलिए संतुलित होना जरुरी है। सब सुखी हो, सब उपभोग कर सकें इसके लिए
संतुलित विकास हो। तुलसी ने इंसानी तत्वों को स्वीकार करने पर बल दिया।
विश्व को विनाश से बचाना है तो आचार्यश्री के बताए अणुव्रत को अपनाना होगा।
राजनीति के बारे में उल्लेख करते हुए डॉ. जोशी ने कहा कि राज कहीं और नीति
कहीं है। राज में नीति बनी रहे। नैतिक आधार पर राजनीति संचालित होती रहे।
हमें धर्म के तत्व को समझना होगा।
गुरु के रूप में साक्षात् भगवान विराजित हैं : डॉ. हर्षवर्धन
दिल्ली
सरकार के नेता प्रतिपक्ष डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि मेरे लिए यह अभी तक के
जीवन का सबसे ज्यादा सौभाग्यशाली अवसर है कि मैं देश के सबसे महान् संत और
उनकी परम्परा को आगे बढ़ाने वाले संत का एक साथ दर्शन कर रहा हंू। करीब
अठारह वर्ष पूर्व बीकानेर आने का अवसर प्राप्त हुआ था, उस समय मैं शिक्षा
मंत्री था। 100 शिक्षकों का दल मेरे साथ यहां आया, तीन दिन रहा तथा
महाप्रज्ञजी का शुभसान्निध्य हमें मिला। महाप्रज्ञजी से उच्च कोटि के विचार
और प्रेरणा हमें मिली। हम सबका यह सौभाग्य है कि ऐसे महान् संतों का
सान्निध्य हमें मिला है। गुरु के रूप में साक्षात् भगवान हमारे सामने
उपस्थित हैं। दुनिया में महावीर, राम, कृष्ण भी इन्हीं की तरह थे जो हमारे
साथ इंसानों की तरह थे। इन संतों में 33 करोड़ देवी देवता दिख रहे हैं।
इन्हें देखने से भारत विश्व गुरु की पहचान को परिभाषित करता है। डॉ.
हर्षवर्धन ने कहा कि हम इंसान के रूप में पैदा जरुर हुए हैं लेकिन इंसान
बनना बहुत बड़ी चुनौती है। इस चुनौती को पार गुरुदेव तुलसी ने किया और
अणुव्रत का संदेश दिया। आचार्य तुलसी के बताए मार्ग पर चलकर देश व मानव
कल्याण को समर्पित हों तभी उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
पिता की परम्परा कायम करने आया हंू : वर्मा
विधानसभा
सदस्य प्रवेश वर्मा ने ú अर्हम् कहकर अपना वक्तव्य प्रारंभ किया। वर्मा ने
कहा कि वह पहली बार बीकानेर आए हैं और सौभाग्य की बात है कि महाश्रमणजी के
दर्शन करने का अवसर मिला है। मेरे पिता साहिब सिंह वर्मा भी आचार्य तुलसी
के भक्त रहे हैं। वे आचार्य तुलसी से आशीर्वाद लेने समय-समय पर जाया करते
थे। मैं भी उसी परम्परा को कायम रखना चाहता हंू और आचार्यश्री महाश्रमण से
आशीर्वाद लेता रहंूगा। जो समय गुरुदेव की शरण में बिताया है वह समय मेरे
लिए मूल्यवान हो गया है। व्यापारीवर्ग को सम्बोधित करते हुए कहा कि मेरे
पिता साहिब सिंह वर्मा कहा करते थे इस धरती पर जो बैलेंस सीट है वह भले ही
नुकसान में चले लेकिन ऊपर वाले की बैलेंस सीट में हम लाभ जरुर कमाते रहें।
यदि ऊपर वाले की बैलेंस सीट में लाभ कमाना है तो गुरु का आशीर्वाद, गुरु की
सेवा करनी ही होगी।
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