श्रीगंगानगर। 16 मार्च।
आज प्रात: पूज्य आचार्य श्री महाश्रमण होली चातुर्मास के द्विदिवसीय प्रवास हेतु श्रीगंगानगर पधारे। वीतराग समवसरण में अपने प्रवचन के दौरान फरमाया कि-'शुभ अवसरों पर लोग परस्पर मंगलकामनाएं प्रेषित करते है। हर व्यक्ति मंगल की कामना करता है। विश्व में सबसे बड़ा मंगल धर्म है। अहिंसा, संयम एवं तप धर्म के तीन आयाम है एवं इन तीनो की आराधना करनेवाला मंगल प्राप्त करता है। जीवन में ज्ञान का प्रकाश हो और अहिंसा पथ पर जीवन रूपी कार संयम के ब्रेक के साथ आगे बढ़ती रहे तो निश्चित ही मंगल लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। व्यक्ति अहिंसा से तीन कारणो से विमुख होता है- अज्ञान, अभाव एवं आवेश। जब व्यक्ति को हिंसा के दुष्परिणामो का ज्ञान न हो, अभाव के कारण स्वभाव बिगड़ जाए या फिर गुस्से लोभ जैसे आवेश व्यक्ति पर हावी हो तो वह हिंसा कर लेता है। जीवन में अहिंसा के साथ मन, वचन और इन्द्रियों के संयम की आराधना भी जरुरी है। आत्मकल्याण के लिए प्रयास करते हुए हर अच्छा कार्य किया जाए, अछा कार्य- शुभ योग अपने आप में तपस्या है। व्यक्ति अहिंसा, संयम एवं तप की आराधना कर मंगल को प्राप्त कर सकता है।
आचार्यप्रवर का करीब 14 वर्षो बाद श्रीगंगानगर आना हुआ है। यहाँ से द्विदिवसीय प्रवास के बाद 18 को टाटिया कोलेज एवं 19 को लालगढ़ पधारेंगे।
0 Comments
Leave your valuable comments about this here :