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पूज्य प्रवर आचार्य श्री महाश्रमणज़ी का 41वां दीक्षा दिवस समारोह युवा दिवस के रूप में मनाया गया


 पूज्य प्रवर आचार्य श्री महाश्रमणज़ी का 41वां 
दीक्षा दिवस समारोह युवा दिवस के रूप में मनाया गया

पूज्य प्रवर आचार्य श्री महाश्रमणज़ी एवं साध्वी प्रमुखा श्रीं कनकप्रभाजी व मंत्री मुनि सुमेरमलजी लाडऩू ने अपने हिसार प्रवास के दूसरे दिन मंगलवार को अग्रसेन भवन में समाज के लोगों को संबोधित किया। समारोह के दौरान पूज्य प्रवर आचार्य श्री महाश्रमणज़ी का 41वां दीक्षा दिवस समारोह धूमधाम से मनाया गया।


प्रवचन के दौरान पूज्य प्रवर आचार्य श्री महाश्रमणज़ी ने फ़रमाया कि इस दुनिया में वो मनुष्य सौभाग्शाली होता हैं, जो आध्यात्मिक साधना के लिए घर से निष्क्रमण होते हैं। उसमें से एक मैं भी शामिल हूं। मुझे भी साधना का मौका मिला। मुझे ही नहीं और जितने भी साधु साध्वियां हैं, उन सभी को साधना करने का अवसर मिला है। उन्होंने बताया कि वे आचार्य तुलसी की आज्ञानुसार सरदार शहर में मुनि सुमेरमल के हाथों दीक्षित हुए। आचार्य महाश्रमण ने कहा कि जो व्यक्ति स्वयं अपने आप को जितना जानता है, उतना और कोई दूसरा उसको नहीं जान सकता। जीवन में व्यक्ति के साथ मोह जुड़ जाता है तो योग अशुभ बन जाता है और मोह से अलग रहने पर हमारा योग शुभ बन जाता है। 


दीक्षा दूसरा जन्म हैं, वह महान भाग्योदय से प्राप्त होता हैं !
यह "राज मार्ग" हैं, मोक्ष की ओर जाने का चरणन्यास हैं, इस पर चलने वाला धन्य हो जाता हैं। आचार्य श्री महाश्रमणजी को उनके 41वे दीक्षा दिवस पर भावभीनी वन्दना अर्पित करते हैं। युवा वह है जो उत्साही और आशावादी हैं। जो सम्यक स्वाध्याय और अच्छा चिन्तन करता हैं, उसका यौवन अक्षुण रहता हैं। मानसिक प्रसन्नता से "चिर युवा" रह सकते हैं। आचार्य प्रवर "चिर युवा" हैं। आपश्री के आध्यात्मिक उज्जवल भविष्य की "मंगलकामना" के साथ आपसे यही आशीर्वाद चाहते हैं कि हम भी संयम पथ अपना कर अपना आत्मकल्याण करे।
हिसार, 13 मई 2014 जैन तेरापंथ न्यूज देवेंद्र डागा, स्वरूप चन्द दाँती