मोक्ष प्राप्ति के चार रास्तों में से एक हैं- तप।
अक्षय तृतीया उसी को परिलक्षित हैं। कहा जाता हैं कि कर्म किसी को नहीं छोड़ते, चाहे राजा हो या रंक, सामान्य जीव हो या तीर्थंकर बनने वाला।
भगवान ॠषभदेव को भी अपने निकाषित कर्मों के कारण दिक्षा लेने के लगभग बारह महिनों तक शुद्ध आहार-पानी नहीं मिला।
आज ही के दिन उनके पड़पोते श्रेयांस को आपको आहार दान देने का सौभाग्य मिला। तभी से इस दिन को अक्षय तृतीया / आखातीज के रूप में मनाते हैं।
यह पर्व हमें प्रेरणा देता हैं कि हम अपने जीवन में नियमित किसी न किसी तप को अंगीकार कर मोक्ष महल की ओर अग्रसर बने।
प्रस्तुती स्वरूप चन्द दाँती अभातेयुप जैतेस
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