भारतीय लोकतंत्र विश्व के सभी देशों में अपना अनूठा स्थान रखता है। भारत में लोकतंत्र की स्थापना हुए मात्र साठ वर्ष ही हुए हैं। परंतु प्राचीनकाल से ही इसके सिद्धांतों का प्रार्दभाव हो चुका था। भगवान महावीर के दर्शन में इसका स्पष्ट उदाहरण मिलता है। महावीर लोकतंत्र सिद्धांत समानता का था। महावीर के अनुसार आत्मीक समानता की अनुभूति के बिना अहिसाविफल हो जाती है। साथ ही समानता के अभाव में उत्पन्न सामाजिक एवं राजनीतिक विषमताएं गणराज्य की विफलता का मूल कारण हैं। महावीर ने आत्म निर्णय के अधिकार प विशेष बल दिया है। उन्होंने कहा था सुख और दुख दोनों तुम्हारी ही सृष्टि है। तुम्हीं अपने मित्र हो और तुम्हीं अपने शत्रु। यह निर्णय तुम्ही को करना है, तुम क्या होना चाहते हो। जनतंत्र के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत है। जहां व्यक्ति को आत्मनिर्णय का अधिकार नहीं होता, वहां उसका कर्तव्य कुंठित हो जाता है। नव निर्माण के लिए पुरुषार्थ और पुरुषार्थ के लिए आत्म निर्णय का अधिकार आवश्यक है। महावीर का एक अन्य सिद्धांत सापेक्षता। का अर्थ है, सबको समान अवसर। बिलौना करते समय एक हाथ पीछे जाता है और दूसरा आगे आता है। इस क्रम से नवीनता निकलता है। चलते समय एक पैर आगे बढता है, दूसरा पीछे। फिर आगे वाला पीछे और पीछे वाला आगे आ जाता है। इस क्रम से गति होती है। आदमी आगे बढ़ता है। यह सापेक्षता ही स्यादवाद का रहस्य है। इसी के द्वारा सत्य का ज्ञान और उसका निरूपण होता है। यह सिद्धांत जनतंत्र की रीढ़ है। कुछेक व्यक्ति सत्ता, अधिकारी और पद से चिपककर बैठ जाएं दूसरों को अवसर न दें तो असंतोष की ज्वाला भभक उठती है। यह सापेक्ष नीति गुटबंदी को कम करने में काफी काम कर सकती है। नीतियां भिन्न होने पर भी यदि सापेक्षता हो, तो अवांछनीय अलगाव नहीं होता। महावीर के ये समस्त सिद्धांत मुक्ति के परिचायक हैं। जो आज जनतंत्र में व्यावहारिक मुक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
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