गुरुवर,
आप गंगाजल से पावन
हिमगिरी से ऊँचे
बर्फ सी उज्जवलता लिए
चमके विश्व क्षितिज पर।
जीवन के ख्यातिमान नक्षत्र
तुमने सिखलाया कैसे जाने स्वयं को
फिर बतलाया कैसे त्यागे तन को
बन प्रेक्षाध्यान चमक रहा
ज्यो सप्त ऋषि मंडल
ध्यान कायोत्सर्ग और शरीर लेश्या
अनुप्रेक्षा अंतर्यात्रा से खुला मन का द्वार
कैसे चलना उठाना बैठना
विधिवत दिया उसका ज्ञान
हम करे जीवन निर्माण
सिख कर जीवन विज्ञान
जन जन की चेतना को रूप दिया अहिंसा का
और भगाया भाव दिलो से हिंसा का
बन अहिंसक यात्रा के सुद्रढ़ सारथी
तुम मोह ग्रस्त जनता को तारने आये
बन कर तारण हार
अखंड नाद सा गूंज रहा जग में
महाप्रज्ञ तेरा नाम
करुणा कोठारी
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