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धर्म है परम मंगल : आचार्य श्री महाश्रमण


दिल्ली। 2 जुलाई। पूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी ने आज दिल्ली में चातुर्मासिक प्रवेश के अवसर पर अध्यात्म साधना केंद्र महरौली में उपस्थित विशाल जनमेदिनी को संबोधित करते हुए फरमाया कि- हमारी दुनिया में मंगल की कामना की जाती है। आदमी स्वयम के लिए एवं दुसरो के लिए भी मंगल कामना अर्पित करता है, प्रयास करता है। मंगल हेतु पदार्थों का प्रयोग भी करता है जैसे गुड़ आदि। लेकिन पदार्थ सर्वोच्च मंगल नहीं होते । दुनिया में उत्कृष्ट मंगल धर्म होता है। जिसके जीवन में धर्म उतर गया उसका परम मंगल हो जाता है।
धर्म क्या है ? अहिंसा संयम और तप धर्म है। जिसके जीवन में अहिंसा, संयम और तप हो उसके जीवन में धर्म उतर गया फिर वो किसी सम्प्रदाय, देश, परिवेश से सम्बंधित हो उसका मंगल जरुर होगा।
अहिंसा शाश्वत, ध्रुव धर्म है। आदमी के मन में अनुकम्पा  दया मैत्री का भाव होना चाहिए। आध्यात्मिक अनुकम्पा का आध्यात्मिक क्षेत्र में बड़ा महत्त्व है। प्रत्येक प्राणी को अपने समान समझे।
जीवन में संयम की साधना हो। साधू हो या शासक सभी संयम का पालन करे। राजनीति या सत्ता में आनेवाले लोगो के लिए सज्जन की रक्षा, दुर्जन पर नियंत्रण एवं जनता का भरण-पोषण राजधर्म है।
किसी संस्कृत कवि ने कहा अधिकार आने पर जो उपकार ना करें उसे धिक्कार है। शासन चलाना बड़ा दुष्कर कार्य है। राजनीती में रहने वाले लोगों को कितनी आलोचना, विरोध सहन करना होता है।
व्यक्ति सुविधावाद की आसक्ति को त्यागे एवं तप को अपनाएं। तपस्या से मंगल होता है। देवता भी उस आदमी को नमस्कार करते है जिसके मन में धर्म रमता है।
परम पूज्य आचार्य श्री तुलसी एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के साथ अध्यात्म साधना केंद्र में आया था। आज पर्याय परिवर्तन हुआ है। मंत्री मुनि सुमेरमलजी, साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी एवं सभी साधू-साध्वियों के साथ दिल्ली चातुर्मास प्रवेश कर रहा हूँ इसका मुझे आत्मतोष है कि सरदारशहर में दिया गया वचन पूरा कर रहा हूँ। दिल्ली श्रावक समाज इस चातुर्मास का पूरा लाभ ले।
इस अवसर पर पूर्व उप-प्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी, केन्द्रीय मंत्री श्री अनंत गीते, श्री थावरचंद गहलोत आदि ने वक्तव्य के माध्यम से दिल्ली में पुज्य्प्रवर का स्वागत किया।