आचार्यश्री महाश्रमण ने कहा कि जो वीतराग है वही परम् सुखी है। तीर्थंकर मोहनीय कर्म का नाश करते हैं। कठिन विघ्न बाधाएं आ जाए तो भी हमारा मनोबल रहे क्षमता भाव रहे।
आचार्यश्री महाश्रमण ने गुरु को सद्मार्ग पर ले जाने वाले बताते हुए कहा कि गुरु ज्ञानी, कंचन कामिनी के त्यागी होने चाहिए।
भ्रष्टाचार से सदाचार की ओर ले जाने का रास्ता है-अणुव्रत
आचार्य तुलसी जन्म षताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के सान्निध्य में पंच दिवसीय अणुव्रत प्रचेता शिविर का षुभारम्भ हुआ।
अणुव्रत षक्ति का प्रचण्ड अभ्युदय राष्ट्रीयता का विकास करने में सहायक है। (नैतिकता प्रामाणिकता से समृृद्धि के विकास का उदाहरण है बिल गेट्स)
अणुव्रत एक सार्वभौम अभियान है अणुव्रत व्यक्ति सुधार में विश्वास करता है। जैन-अजैन, मैन वुमेन सारे भेद मिटाकर आस्था का जागरण करता है। अणुव्रत जीवन जीने की कला है। इस कला द्वारा सामकिय परिस्थितियों से जुझकर भी नैतिक प्रामाणिक व्यक्ति आत्मबल द्वारा सदाचार का मार्ग अपना सकता है।
अणुव्रत प्राध्यापक मुनिश्री सुखलालजी, कमल मुनि, डाॅ. महेन्द्र कर्णावट, अणुव्रत न्यास प्रबंध ट्रस्टी संपत नाहटा आदि के सामयिक वक्तव्य हुए।