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अगस्त, 2014 आध्यात्म साधना केंद्र, महरौली, नई
दिल्ली
तीर्थंकर
महावीर की अध्यात्म यात्रा के प्रसंग का विवेचन करते हुए स्वयं तीर्थंकर के
प्रतिनिधि आचार्य श्री महाश्रमण जी ने वर्धमान समवसरण में उपस्थित श्रावक श्राविका
समाज के समक्ष फ़रमाया कि जीवन मे अनुशासन की अपेक्षा होती है। उदेश्य होता है कि
सामने वाले की गलत आदत छूटे,
वह सन्मार्ग पर चले। परिवार
मे भी अनुशासन का महत्व होता है। व्यक्तित्व निर्माण के लिए अनुशासन अपेक्षित है।
हमारे बाल साधू साध्वियो पर भी अनुशासन करते है ताकि वे उच्छृंखलता की ओर न बढे, संतुलित व प्रसन्न रह सके एवं विनम्र बन सके।
अध्यात्म की साधना में तपस्या का भी बड़ा महत्व है। निर्जरा
के 12 प्रकारों मे एक तपस्या भी है। जितना संभव हो
तपस्या करे। नवकारसी करे। एक छोटा सा तप नवकारसी यदि जीवन से जुड़ जाये तो अच्छा
उपक्रम है। साधू को तो तपोधन कहा गया है। विहार आदि मे अनुकूलता न हो तो विगय
वर्जन कर सकते है।
इसी
बीच पूज्यप्रवर ने एक शाश्वत सिद्धांत का प्रतिपादन किया कि वासुदेव मर कर नियतिवश
नरक में ही उत्पन्न होता है।चाहे वह भगवान की आत्मा ही क्यों न हो? कर्मों की दुनिया में पक्षपात नहीं होता।
मंत्री
मुनि श्री जी ने अपने प्रेरक उद्बोधन में त्याग के महत्व को बताते हुए फ़रमाया कि
त्याग धर्म, भोग अधर्म। वीतराग दर्शन मे त्याग को धर्म
माना गया है। साधू का तो सारा जीवन त्याग प्रधान है। गृहस्थ अवस्था मे त्याग और भोग
दोनों का क्रम चलता है। त्याग की सबसे बड़ी प्रवृति है-आवृत को रोकना। श्रावक अपने
जीवन में त्याग की वृद्धि करे,
यदि नहीं करता तो वह श्रावक
सजग नही है। त्याग करने मे विवेक भी हो कि कितने करण कितने योग से करना। त्याग की
न्यूनतम सीमा एक करण एक योग है। करण योग के साथ त्याग करने का बहुत महत्व है। पर्युषण पर्व के छठे दिन जप दिवस पर साध्वी
श्री त्रिशला कुमारी जी ने जप के नियमों का विस्तार से विश्लेषण करते हुए बताया कि
जप में हम मंत्रो का उच्चारण करते है। मंत्र शब्दात्मक होते है। शब्दों में अथाह
ऊर्जा होती है। जप के लिए त्रिसंध्या का समय, एकांत
व पवित्र स्थान, पूर्व या उत्तर दिशा सर्वश्रेष्ठ है। नासाग्र
पर मन को केन्द्रित करके अर्थ बोध के साथ जप करें। कर्मों की निर्जरा व आत्मा की
उज्वलता ही जप का लक्षय रहे। जप के साथ श्रद्धा, आस्था का होना भी अनिवार्य है।
साध्वी श्री सौभाग्य यशा जी द्वारा जप दिवस पर आधारित गीत
का संगान किया गया। मुनि अनंत कुमार जी द्वारा अर्हत अरिष्टनेमि तथा मुनि
जिनेन्द्र कुमार जी द्वारा अर्हत पार्श्व प्रभु पर अपने विचारो की प्रस्तुति दी
गयी। मुनि दिनेश कुमार जी ने कार्यक्रम का कुशल संचालन किया।
संवाद एवं फोटो साभार : दिव्या जैन, विनित
मालू, जैन तेरापंथ न्यूज़ टीम दिल्ली दिनांक : २७-०८-२०१४