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अति आहार मति - गति को बिगाड़ देता - मुनि मणिलालजी स्वामी


सिरियारी - आचार्य श्री भिक्षु समाधि स्थल के हेम अतिथि गृह में मुनिश्री मणिलालजी ने प्रवचन करते हुये कहा - जैनधर्म का प्रमुख पर्व हैं - पजुषण। यह पर्व स्वयं को जानने पहचानने और आध्यात्म की गहराईयों में जाने का शुभ अवसर हैं। उन्होंने - ‘खाद्य सयम दिवस’ पर कहा - आहार करना प्रत्येक व्यक्ति के लिये आवष्यक है पर कितना करना यह विवके होना जरूरी हैं। विवके पुर्वक यदि आहार किया जाता है - तन-मन स्वस्थ रहते है। अति आहार मति - गति को बिगाड़ देता है। मति बिगड़ती है तो वह गलत काम करता है और गलत काम करने वाले की गति निष्चित रूप से बिगड़ती है। भोजन को आसक्ति के भावों के साथ करना पाप कर्म करना है।
मुनि धर्मेषकुमारजी ने कहा - जीवन में व्रत जरूर ग्रहण करो। व्रत मुक्ति का सेतु हैं और अव्रत नरक का द्वार। व्रत व्यक्ति को कर्म मुक्त बनाता है। जो व्यक्ति जीवन में व्रत नहीं ग्रहण करता वो अपना जन्म व्यर्थ गवा है। मुनि विनोदकुमारजी, कुषलकुमारजी ने प्रवचन किये।
इस अवसर पर संस्थान के मंत्री श्री गौतमचंदजी मूथा, श्री पारसमलजी छाजेड़, श्री मांगीलालजी छाजेड़, श्री जयचंदलालजी बोथरा, श्री मांगीलालजी रांका, और बाहर से आये श्रद्धालु मौजुद थे।