परम पूज्य आचार्य प्रवर ने
वर्धमान समवसरण में उपस्थित विशाल जन समूह को प्रेरक उद्बोधन देते हुए फ़रमाया कि
गाथा ग्रन्थ में दशविद धर्म का विवेचन आता है।दस धर्मों में छठा धर्म है-सत्य।
हमारे जीवन में सच्चाई की साधना का बहुत महत्व है। यदाकदा व्यक्ति झूठ का भी सहारा
लेता है। जहाँ मन कमजोर पड़ता है,
वहाँ फिर झूठ का भी प्रयोग
हो जाता है। पर कुछ लोग सच्चाई के मार्ग पर चलते हैं। आज भाद्रव शुक्ला छठ के दिन अष्टम आचार्य कालुगणी जी के
महाप्रयाण दिवस पर उनको संस्मृत करते हुए कहा कि कालूगणी जी की एक पुण्यता रही की
उनके हाथों से दीक्षित दो सदस्य मुनि नथमल और मुनि तुलसी तेरापंथ के युगप्रधान
आचार्य बने। कालूगणी जी संस्कृत के अच्छे विद्वान् आचार्य हुए है। उनके युग में ही
संस्कृत भाषा का विकास हुआ।संघ में विकास के बीज बोने का काम कालूगणी ने ही किया
था। उन्हीं की बदोलत आचार्य महाप्रज्ञ जी और भी कई संत संस्कृत भाषा के परम
विद्वान बने। गुरुदेव ने अपना संस्मरण सुनाते हुए कहा आज के
ही दिन मैंने साधू बनने का निर्णय लिया था। उस दिन मैंने कालूगणी की माला फेरी और
बहुत सोचा था, दो मार्ग है- साधू जीवन और संसार का
मार्ग।दुःख दोनों में हो सकता है। पर साधू जीवन में दुःख सहोगे तो निर्जरा होगी और
मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होगा यही सोच कर मैंने वहीं बैठे बैठे शादी का त्याग किया
था। तेरापंथ का सौभाग्य है कि कालूगणी जैसे संत
तेरापंथ के आचार्य बने।
संतो के साथ साथ गृहस्थों को
भी सच्चाई की साधना में अनवरत होने का प्रयास करना चाहिए। सच्चाई से आत्म कल्याण
तो होता ही है साथ में बाह्य प्रतिष्ठा भी मिलती है।अपने जीवन में सच्चाई का
अभ्यास करना चाहिए।
मंत्री मुनि प्रवर ने अपने
प्रेरक उद्बोधन में फ़रमाया कि धर्म मंगल है। धर्म व्यक्ति को इस संसार से शाश्वत
स्थिति तक पहुँचाने वाला है। श्रावक को धर्म का मूल आस्वादन करने का प्रयास करना
चाहिए। बाहरी पहचान गौण है। प्रयास रहे आचरण में धर्म आये। उपासना में धर्म
आये।अर्थ की आसक्ति होना धर्म का लक्ष्य नही है।अनासक्ति एवं निर्ग्रन्थ धर्म की
उपासना करे। क्रोध, मान,
माया, लोभ की ग्रंथि न रहे।ग्रंथि को तोड़ना मुश्किल होता है।
अनासक्ति के साथ कुछ भी करोगे तो पाप का बंधन उस रूप में नहीं होगा। बंधेंगे भी तो
शुभ भावों के एक झटके से ही टूट जायेंगे।ऐसा करने से कलयुग में भी सतयुग जैसी साधना
कर अधिक लाभ उठा सकेंगे।
मुनि श्री दिनेश कुमार जी ने
"ॐ जय कालू" गीत व जप के द्वारा कालूगणी जी की समृति करवाई। आज जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित भगवती सूत्र (हिंदी)
के ग्रन्थ का लोकार्पण भी हुआ।जैन विश्व भारती के ट्रस्टी श्री मदन लाल जी तातेड़
के द्वारा भगवती सूत्र ग्रन्थ के हिंदी वाचन की प्रति गुरुदेव को भेंट की
गयी।प्रो. महेन्द्र मुनि के श्रम को गुरुदेव ने सराहा। इस अवसर पर प्रो.महेन्द्र मुनि ने विस्तृत रूप में अपनी
बात रखी तथा जैन आगमों के संपादन कार्य को आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी का
भागीरथ प्रयत्न कह अपनी समर्पण भावना प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश जी ने किया।
संवाद एवं फोटो साभार : दिव्या जैन, विनित मालू, रिषभ जैन, विनय जैन, ज्योति & मान्या कुण्डलिया
जैन तेरापंथ न्यूज़ टीम दिल्ली दिनांक : ३०-०८-२०१४