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भारत से मांस नहीं अपितु अध्यात्म निर्यात हो: आचार्य श्री महाश्रमण


नई दिल्ली 14 सितम्बर, 2014 : विश्व मैत्री एवं राष्ट्रीय क्षमापना दिवस का भव्य आयोजन जैन महासभा के तत्ववाधान में जापानी पार्क रोहिणी में मनाया गया। धर्म संसद के प्रभावक मंच पर तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य श्री महाश्रमणजी स्थानकवासी परम्परा के आचार्य श्री शिवमुनि जी महाराज, मूर्तिपूजक सप्रदाय के आचार्य अभयदेव सूरी, एवं दिगम्बर संप्रदाय के मुनि श्री तरुण सागर जी उपस्थित थे। इस धर्म संसद में जैन एकता, विश्व मैत्री एवं अहिंसा विशयक सृजनात्मक चिंतन मंथन से नवनीत निकलकर आया और कुछ महत्वपूर्ण उद्घोषणा हुई। अहिंसा के व्यापक प्रसार के साथा अनन्त चतुर्दर्शी के पश्चात प्रथम रविवार केा ‘‘विश्वमैत्री दिवस ’’ इंटरनेशनल फोरगिवनेस डे एवं मनाया जायेगा इस हेतु भारत सरकार एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को ज्ञापन देकर आवशयक कार्यावाही की जायेगी। दिल्ली में बैठी धर्म संसद में सामूहिक क्षमा याचना का आयोजन हुआ। विश्व मैत्री क्षमावाणी के कार्यक्रम में उपस्थित विशाल जन समूह को संबोधित करते हुए महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी ने फ़रमाया कि आर्हत वाड्मय में कहा गया है- णमो जिनाणं जियभयाणं। अर्थात मैं उन वीतराग प्रभु को नमस्कार करता हूँ, जिन्होंने भय को जीत लिया। जब समता का विकास हो जाता है फिर भय नहीं रहता। राग द्वेष भी दूर हो जाते हैं।

इसके उपरांत पूज्य गुरुदेव ने इस कार्यक्रम को लक्षित करते हुए फ़रमाया कि जिन द्वारा प्रवर्तित है यह जैन शासन। आज हमारे चारो सम्प्रदायों का संगम हो रहा है। यह एक बड़ी बात है। जैन शासन में क्षमा का बहुत महत्व है। क्षमा के आधार पर ही विश्व मैत्री की कल्पना की जा सकती है। हमारा पर्युषण और दिगम्बर परम्परा का दशलक्षण पर्व समाप्त हुआ है। दोनों जैन धर्म के विशिष्ट पर्व हैं। इन दोनों पर्वों के समाप्त होने पर पहला रविवार विश्व मैत्री दिवस के रूप में मनाया जाए। इस आधार पर हम एकता की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। जैन शासन की एकता इस आधार पर हो कि परस्पर मैत्री भाव रहे। हम जैन विद्या के विकास एवं प्रचार प्रसार का प्रयास करें। उसकी सुरक्षा का भी प्रयास करें। यह सम्भव नहीं कि हम सभी जैन सम्प्रदाय वेश, चर्या आदि में एक हो जाएं, पर हम आपस में मैत्री भाव व सद्भावना रखें। जैन शासन की सुरक्षा व विकास का भी प्रयत्न रहे। गुरुदेव ने कहा कि वेश से मुक्ति नही मिलेगी, राग-द्वेष मुक्ति से ही मुक्ति मिलेगी। क्षमा के द्वारा अपने चित्त को प्रसन्न व निर्मल बनाने का प्रयास करें। माँस निर्यात के बारे में कहा कि भारत जैसे देश से माँस का निर्यात क्यों हो ? भारत जैसे देश से तो अध्यात्म की बात बाहर जाए। अध्यात्म का प्रसार हो। हम सभी अपने भीतर क्षमा एवं समता का विकास करते है।

इस अवसर पर आचार्य श्री शिव मुनि जी महाराज ने फ़रमाया कि हमारे सम्प्रदाय अलग हो सकते हैं, पर धर्म हमारा एक ही है। आत्मा सब में एक ही है। भगवान महावीर का बताया हुआ सबसे प्रमुख मार्ग है क्षमा। हम सभी क्षमा व मैत्री को ध्यान में रखें। हम सभी भारत सरकार का ध्यान आकर्षित करवाऐं कि भारत से माँस का निर्यात बंद हो। महावीर के देश में ऐसा न चले। युवा पीढ़ी लव जिहाद से भी सतर्क रहे।

आचार्य अभय देव सूरि जी ने विश्व मैत्री की बात की। संतो की सीमा एवं मर्यादा बताते हुए कहा कि श्रावक समाज को माँस बंदी का कार्य करना चाहिए।




क्रांतिकारी मुनि तरुण सागर जी ने युवा पीढ़ी को संस्कारी बनाने की बात की। जब तक संस्कार रहेंगे तब तक लव जिहाद आपका कुछ नही बिगाड़ सकता। माँस निर्यात बैन पर तुरंत सरकार से कार्यवाही करने की अपील की। तथा भारत सरकार अपील की कि अनन्त चतुर्दशी के बाद पहले रविवार को राष्ट्रीय क्षमावाणी दिवस ( national forgiveness day ) के रूप में घोषित करे।

तरुण सागर जी ने आचार्य महाश्रमण जी को सम्बोधित करते हुए कहा कि- "हम सब तो श्रमण हैं; पर आप तो महाश्रमण हैं।"




इस प्रकार चारों आचार्यों का यह मिलन और धर्म संसद की यह बैठक जैन एकता एवं सौहार्द को पुष्ट करने वाली रही। धर्म संसद में प्रेम के रंग बरसे तथा विशाल जन सभा धार्मिक जागरणा का अवसर पाकर अत्यंत सुखद अनुभव कर रही थी।