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‘‘संगठन व समूह के लिए अनुशासन आवश्यक: आचार्य महाश्रमण’’

दिल्ली, 23 सितम्बर, 2014 राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक माननीय मोहन भागवत जी और जैनाचार्य अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी के संयुक्त तत्वावधान में मानवीय मूल्यों एवं राष्ट्रीय चरित्र निर्माण, नैतिकता और सौहार्द पर विशेष चिन्तन गोष्ठी का आयोजन हुआ।
आध्यात्मिक साधना केन्द्र महरोली के वर्धमान समवसरण में उपस्थित विशाल जनसमुदाय को संबोधित करत हुए आचार्यश्री महाश्रमण ने अपने प्रवचन में कहा कि जीवन अधुर्व है शाष्वत नहीं है। आत्मा और शरीर ये दो तत्व हैं। आत्मा का अलग तत्व है और शरीर अलग तत्व है। आत्मा व शरीर का संयोग जीवन है, वियोग मृत्यु है। मनुष्य यह चिंतन करे कि जब तक बुढापा पीडि़त न कर दे, इन्द्रियां क्षीण न हो जाए तब तक धर्म की साधना करनी चाहिए। शरीर सक्षम है तब तक सेवा आदि अच्छा काम कर लेना चाहिए।
अनुशासन हम सबके लिए आवश्यक है। व्यक्ति पहले स्वयं पर अनुशासन करे, फिर दूसरों पर अनुशासन करे। अनुशासन देश व संगठन के लिए जरूरी है। तेरापंथ में अनुशासन का महत्व रहा है। अनुशासन के बिना लोकतंत्र का देवता विनाश को प्राप्त हो जाता है। लोकतंत्र में अनुशासन अति आवश्यक है। अनुशासन के द्वारा ही व्यक्ति व समाज भी विकास कर सकता है।  भारत संतों, ऋषीयों की भूमि है। भारत के पास ज्ञान का भण्डार है। प्राच्य विद्या है इसका उपयोग होना चाहिए, प्रसार होना चाहिए। भारत में नैतिक मूल्यों  के ह्रास की स्थित है उसे एक कमी के रूप  में देखा जा सकता है। मनुष्य यदि झूठ न बोले तो वह अपने जीवन में आध्यात्मिक दृष्टि से स्वस्थ हो सकता है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व तेरापंथ धर्मसंघ के आपसी संबंधों की चर्चा करते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक सरसंघ चालक जी की उदारता है कि प्रतिवर्ष हमारी मुलाकात होती है और आगामी मुलाकातों के लिए भी आप इच्छुक हैं जिसका एक कारण हो सकता है दोनों संगठनों में अनुशासन और मर्यादा का होना है। हम आपसी संबंधों के द्वारा अच्छा काम कर सकें, राष्ट्र सेवा में योगभूत बनें ऐसी हमारी कामना है। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी  ने किया।

फोटो व रिपोर्ट : डॉ कुसुम लुनीया, बबलु, विनय जैन, मान्या कुण्डलिया, दिव्या जैन व JTN दिल्ली टीम 
प्रस्तुति: अभातेयुप जैन तेरापंथ न्यूज़ से महावीर सेमलनी, पंकज दुधोड़िया, समकीत पारीख