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संयुक्त राष्ट्र संघ में अणुव्रत की गूंज

संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय, न्यूयॉर्क ! संयुक्त राष्ट्र लोक सूचना विभाग एवं गैर सरकारी संस्थाओं के 65 वें वार्षिक सम्मेलन में अणुविभा के पदाधिकारियोँ ने एक कार्यशाला में अणुव्रत और वहनीयता (सस्टेनेबिलिटी) पर प्रभावशाली प्रस्तुति दी । 
यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय न्यूयॉर्क में दिनांक 27 अगस्त से 29 अगस्त 2014 तक आयोजित था। जिसमें 117 देशो के चार हजार प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। वे विभिन्न देशों में स्थित उन 900 देशों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे जिन्हें संयुक्त राष्ट्र ने मान्यता दे रखी थी।
इस बार विचारणीय विषय वहनीयता (सस्टेनेबिलिटी) तथा "तृतीय सहस्राब्दि मेँ मानव अस्तित्व" था। गत 200 वर्षोँ मेँ पर्यावरणीय एवँ पारिस्थितिकीय अपक्षय द्रुतगति से हुआ जिससे पृथ्वी की वहनीयता पर अप्रत्याशित कुप्रभाव  पड़ा। इस विनाश को रोकने के उपाय पर इस कार्यशाला में चर्चा की गई।
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख प्रतिनिधि श्री अरविंद वोहरा मॉडरेटर थे। अणुविभा के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सोहन लाल गांधी मुख्य वक्ता थे तथा अणुविभा अध्यक्ष श्री तेजकरण सुराणा, महामंत्री श्री संजय जैन, अणुविभा की संयुक्त राष्ट्र संघ में वैकल्पिक प्रतिनिधि डॉ. पन्ना शाह तथा युवा प्रतिनिधि आयुष विसारिया वक्ता थे।
डॉ. सोहनलाल गांधी ने वहनीयता के वर्तमान संकट पर अणुव्रत के परिपेक्ष्य मेँ प्रकाश डाला । श्री तेजकरण सुराणा ने अणुव्रत और वहनीयता पर प्रभावशाली प्रस्तुति देते हुए कहा कि वर्तमान संकट का एकमात्र समाधान अणुव्रत है। 
श्री संचय जैन ने बच्चो में वहनीयता की चेतना को जागृत करने के लिए बालोदय में बच्चों  पर किए जा रहे प्रयोग की प्रस्तुति दी। तथा कहा कि उत्तरदायी नागरिक ही इस पृथ्वी को बचा सकते हैं। डॉ. पन्ना शाह ने भगवान महावीर के अहिंसा और अपरिग्रह को वहनीयता का रामबाण बताया ।
ज्ञातव्य हो कि  वहनीयता  कैसे बनी रहे, इस पर विभिन्न संस्थाओं ने गोलमेज वार्ता कार्यशालापेनल वार्ता आयोजित कर विचारों का आदान प्रदान किया। सम्मेलन के अध्यक्ष श्री हफाइन्स तथा UN-DPI के प्रमुख जेफरी बेज ने इस अवसर पर कहा भावी पीढ़ी के लिए हमें विकास की गति कम करनी होगी । उसे वहनीय बनाना होगा अन्यथा न तो यह सभ्यता बचेगी न कोई अन्य सभ्यता भविष्य में विकसित होगी ।

इस कार्यशाला के समन्वयक डॉ. सोहनलाल गांधी ने एक वक्तव्य में कहा की 192 देशों में स्थित 1300 संस्थाओं को संयुक्त राष्ट्र ने मान्यता दे रखी है। संयुक्त राष्ट्र लोक सूचना विभाग ने 1998 में यह मान्यता अणुव्रत, सांस्कृतिक सौहार्द, नैतिक मूल्यों के पुनरुत्थान जैसे कार्यक्रमों के कारण दी थी । प्रत्येक संस्था का हर वर्ष मूल्यांकन होता है। अब तक 700 संस्थाओं की मान्यता खत्म कर दी गई है । लेकिन अणुविभा हर वर्ष के मापदंडों में  खरी उतरी । अणुविभा 192 देशों में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मान्य संस्थाओं के से परस्पर सहयोग कर अणुव्रत को अंतर्राष्ट्रीय जगत में नई पहचान दी ।
अणुव्रत आंदोलन के जनक आचार्य तुलसी  को यह अपने आप में बड़ी श्रद्धांजलि है।