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पुनर्जन्म का कारण है कषाय

नई दिल्ली , 10 सितम्बर 2014
अध्यात्म साधना केंद्र,  महरौली

आज पूर्व जन्म अनुभूति प्रेक्षाध्यान शिविर के प्रथम दिन आचार्य प्रवर ने विशाल जन सभा को संबोधित करते हुए फ़रमाया कि गाथा ग्रन्थ में विवेचित धर्म के 10 प्रकारों में 8 वां प्रकार है- तप।
तप क्या है? शुभ योग, निरवद्य चिंतन, मन के पवित्र संकल्प ये सभी तप हैं। वाणी के द्वारा किसी के उत्थान के लिए निरवद्य बातचीत करना तप है। शरीर के द्वारा किसी की सेवा करना तप है। ध्यान भी तप का एक प्रकार है। सिद्धांत है कि हमारी आत्मा को साधना द्वारा मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। हमारी आत्मा ने अनंत अनंत जन्म ग्रहण किये हैं। इतने जन्मों को देखना बताना केवली ही कर सकता है।

आदमी को गलत व बुरे कामों को छोड़ना चाहिए। हमारा वर्त्तमान जीवन है उसे पूर्व कर्मों का आधार मान कर स्वीकार किया जा सकता है। जैसे हम पुराने वस्त्रों को छोड़ कर नए वस्त्र धारण कर कर लेते हैं उसी तरह आत्मा पुराने शरीर को छोड़ कर नया शरीर धारण करती है। पुनर्जन्म का कारण है कषाय। क्रोध, मान, माया, लोभ मूल सिंचन करते हैं। हम सभी का पुनर्जन्म निश्चित है। बाकी साधना के द्वारा जन्मो में कमी कर सकते हैं और मोक्ष के निकट जा सकते हैं।

पूर्व जन्म अनुभूति के सन्दर्भ में गुरुदेव ने फ़रमाया कि पिछले जन्म की बातें शास्त्रों में मिलती हैं। मेघ कुमार का उदाहरण दे कर गुरुदेव ने पूर्व जन्म स्मृति की बात बताई। जैन दर्शन पुनर्जन्म को मानने वाला दर्शन है। अपने अपने कर्मों द्वारा गतियाँ निश्चित हो जाती हैं। इसी के साथ गुरुदेव ने आयुष्य बंध का नियम बताया कि आयुष्य के 2/3 समाप्त हो जाने पर आयुष्य बंध होता है। तब न हो तो बचे हुए आयुष्य पर यही नियम लागु होता है। इस प्रकार मरने से पहले आयुष्य बंध होगा ही। हमें मानव जीवन मिला है उसका सदुपयोग करें। साधना करें तभी कल्याण संभव है।