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तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम दिल्ली द्वारा आयोजित साप्ताहिक कार्यशाला: संबोध

विषय: सम्यग दर्शन का महत्व - मुनि रजनीश कुमार जी 07-09-1014, रविवार


संबोध कार्यशाला के संभागी सदस्यों को सम्यग दर्शन का महत्व बताते हुए मुनि श्री रजनीश कुमार जी ने फ़रमाया कि 3 प्रकार की दृष्टि होती है- सम्यग दृष्टि, मिथ्या दृष्टि, सम्यगमिथ्या दृष्टि। सम्यग दृष्टि व्यक्ति को मुक्ति की ओर ले जाती है तथा मिथ्या द्रष्टि जन्मो-2 तक व्यक्ति के भवभ्रमण का कारण बनती है।

सम्यग दर्शन का बहुत महत्व है। सम्यग दर्शन के बिना ज्ञान प्राप्त नही होता, ज्ञान के बिना चारित्र प्राप्त नही होता, जहाँ चारित्र नही है, वहाँ मोक्ष प्राप्त नही हो सकता।

सम्यग दर्शन क्या है?
जो वस्तु जैसी है उसे उसी रूप में स्वीकार करना सम्यग दर्शन है। देव, गुरु, धर्म पर आस्था रखना ही सम्यग दर्शन की पहचान है।
देव: अरिहंत हमारे देव है। केवल ज्ञानी, वीतरागी के प्रति श्रद्धा समर्पण हो।
गुरु: जो निर्ग्रन्थ है, जिनमे राग द्वेष की ग्रंथि न हो, उनके प्रति श्रद्धा समर्पण हो।
धर्म: अहिंसा, संयम, तप इत्यादि धर्म है। आत्म शुद्धि साधन धर्म है।
भगवान महावीर ने कहा है 9 तत्वों पर सम्यक श्रद्धा रखना ही सम्यक्त्व का लक्षण है। सम्यग दर्शन होने के पश्चात किसी प्रकार की शंका नही होनी चाहिए।

सम्यग दर्शन के 5 लक्षण बताये गए है-
1) शम: गुस्सा, क्रोध, मान, माया, लोभ को शांत रखना
2) संवेग: मोक्ष की अभिलाषा होना
3) निर्वेग: संसार के प्रति उदासीनता होना
4) अनुकम्पा: दया, करुणा का भाव होना
5) आस्तिकय: आत्मा, परमात्मा, मोक्ष पर श्रद्धा रखना

सम्यग दर्शन के 5 दूषण बताये गए है-
1) शंका: तत्व पर शंका होना
2) आकांक्षा: कुमत के प्रति आकांक्षा
3) विचिकित्सा: धर्म, फल में संदेह होना
4) पर-पाषंड प्रशंसा: मिथ्या द्रष्टि की प्रशंसा करना
5) पर-पाषंड परिचय: मिथ्या द्रष्टि से मिलना जुलना।

सम्यग दर्शन के 4 भूषण बताये गये है:
1) स्थैर्य: धर्म में स्थिर रहना
2) प्रभावना: ऐसे काम जो जिससे धर्म की प्रभावना हो।
3) भक्ति: जिन शासन की भक्ति, गुणगान हो।
4) कौशल: धर्म को समझना, निपुणता प्राप्त करना।
5) तीर्थ सेवा: 4 तीर्थ की निरवद्य सेवा करना।

हम इन सबको समझते हुए सम्यग दर्शन का पालन करते है तो सम्यग दर्शन विवेक का काम करता है। अज्ञान ज्ञान बन जाता है ओर हम मोक्ष की ओर अग्रसर हो जाते है।

प्रस्तुति : JTN टीम दिल्ली