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धार्मिक व्यक्ति की साधना की दो प्रवृतिया होती है- आचार्य श्री महाश्रमण जी

नई दिल्ली, 7 सितम्बर, 2014
अध्यातम साधना केंद्र, महरौली
वर्धमान समवसरण में मनाये जा रहे आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी समारोह, तृतीय चरण के पांचवे दिन का शुभारम्भ महावीर मुनि द्वारा आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी गीत गाकर हुआ। इस अवसर पर परम श्रधेय आचार्य श्री महाश्रमण जी ने फ़रमाया कि धार्मिक व्यक्ति की साधना की दो प्रवृतिया होती है- एकाकी साधना और संघबद्ध साधना। दोनों की अपनी कठिनाई है। अधिकांश लोग सम्प्रदायबद्ध होकर रहते है। भारत में अनेकों सम्प्रदाय है। संप्रदाय के रूप में आचार्य तुलसी को प्रस्तुत किया गया है। आचार्य तुलसी ने साम्प्रदायिक सोहार्द्ध पर विशेष ध्यान दिया था। उनका चिंतन था सम्प्रदाय शरीर के समान है और धर्म उसके भीतर रहने वाली आत्मा के समान है। शरीर का भी महत्व है पर आत्मा का अधिक महत्व है। विभिन्न सम्प्रदायो में भिन्नता होती है तो कई मायनो में समानता भी होती है। शरीर का रंग भिन्न-भिन्न हो सकता है पर रक्त तो सबका लाल होता है। सम्प्रदाय तो भिन्न भिन्न है पर अहिंसा ऐसा तत्व है जो प्राय सब सम्प्रदायो में मिलता है।

आचार्य तुलसी साम्प्रदायिक सोहार्द्ध के प्रवक्ता थे। उन्होंने अणुव्रत आन्दोलन का प्रारंभ किया। अनुव्रत आन्दोलन के अनुरूप धार्मिक सहिष्णुता होनी चाहिए। आचार्य तुलसी के अनन्तर उतराधिकारी आचार्य महाप्रज्ञ भी संप्रदाय के अंदर होने वाले वैमनस्य को अच्छा नही मानते थे। राष्ट्र हित के लिए भी सम्प्रदाय को गौण कर देना चाहिए। सच्चाई का महत्व ज्यादा है। सच्चाई की छत्र छाया में संप्रदाय शोभामान होता है। आत्म शुद्धि के सामने सम्प्रदाय को गौण करना सही है। आचार्य तुलसी को साम्प्रदायिक सोहार्द्ध के पुरोद्धा के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

आज भाद्रव शुक्ला त्रयोदशी का दिन तेरापंथ के संस्थापक  आचार्य भिक्षु का महाप्रयाण दिवस है। उनका 212 वा चरमोत्स्व है। इस अवसर पर पूज्य प्रवर द्वारा रचित गीत का सामूहिक संगान किया गया और सभी के द्वारा 4 लोगस के ध्यान के साथ आचार्य भिक्षु की समृति की गयी एवं उनके प्रति श्रधांजलि अर्पित की गई।

साध्वी प्रमुखा श्री कनक प्रभा जी ने भी अपने उद्बोधन के माध्यम से जनसभा को आचार्य भिक्षु के अवदानो की जानकारी दी।

साध्वी आस्था लता जी द्वारा गीत संगान, साध्वी शांति लता जी एवं मुनि जयंत कुमार के द्वारा प्रेरक वक्तव्य दिया गया। दिल्ली महिला मंडल द्वारा सामूहिक गीत का संगान हुआ। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि कुमार श्रमण जी ने किया।