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"मोक्ष से जोड़ने वाला- योग" - आचार्य श्री महाश्रमण जी

नई दिल्ली, 18 अक्टूबर 2014 आज द्विदिवसीय "National Conferance on Integration of yoga in medical science" के प्रथम दिवस पर वर्धमान समवसरण में उपस्थित धार्मिक जनों को संबोधित करते हुए पूज्यप्रवर ने फ़रमाया कि आर्हत वाड्मय में कहा गया है- आदमी के पास आत्मा नाम का तत्व है  चैतन्य नाम का तत्व है। आत्मा अलग है शरीर अलग है।शरीर और आत्मा का संयोग है तब तक जीवन है। दोनों का अलग हो जाना ही मृत्यु है। आत्मा का शरीर से बिलकुल अलग हो जाना मोक्ष है। नास्तिक विचार धरा में शरीर और आत्मा को एक ही माना गया। परन्तु यह संगत नहीं लगता।
योग को व्यख्याहित करते हुए गुरुदेव ने कहा- हम दूसरों को देखते हैं, अपने आप को देखना ही योग है। "योगः चित्त वृत्ति निरोधः" चित्त की वृत्तियों का निरोध करना ही योग है। अभिधान चिंतामणि में आचार्य हेमचन्द्र ने अष्टांग योग का उल्लेख किया है। शरीर मन और वाणी तीनों की प्रवृतियों को कम करना भी योग का कार्य है। श्वास पर ध्यान केन्द्रित करना, अनुप्रेक्षा करना, इच्छाओं पर संयम करना इत्यादि योग के ही प्रयोग हैं।
योग व अध्यात्म को मिश्रित करते हुए पूज्यप्रवर ने कहा कि जो मोक्ष के साथ जोड़ दे वह "योग"। जन्म और मृत्यु के इस निरंतर क्रम को तोड़ कर सतत आनंद तक योग के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। समाधी तक पहुंचा जा सकता है। समाधि के लिए 3 चीज़ों से मुक्त होना जरूरी है-
1)आधि- मानसिक पीड़ा
2)व्याधि- शारीरिक पीड़ा
3)उपाधि-भावनात्मक पीड़ासमाधि की प्राप्ति में सबसे अधिक भूमिका उपाधि मुक्ति की है। सारांश यही है कि राग द्वेष के भाव कमजोर होते जाएँ, क्षीण होते जाएँ। चेतना का सतत जागरूक स्वरुप निखरे।
डॉ. बिमल छाजेड़ ने अपने वक्तव्य से योग तथा प्रेक्षा ध्यान की ह्रदय विकारों तथा अन्य रोगों में उपियोगिता सिद्ध की। बिमल जी व अन्य मान्यवरों द्वारा पुस्तक "प्रेक्षा ध्यान द्वारा ह्रदय रोग उपचार" पूज्य प्रवर को भेंट की गई।