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"विरोधों में न घबराने वाले प्रतिश्रोत गामी थे आचार्य तुलसी" -आचार्य महाश्रमण


नई दिल्ली,25 अक्टूबर 2014
आज तुलसी जन्म शताब्दी के समापन समारोह में अति विशिष्ट महानुभावों, राजनेताओं तथा सम्पूर्ण देश से समागत अति विशाल जन मेदनी को संबोधित करते हुए शांति दूत, महामना, परम पूज्य आचार्य महाश्रमण जी ने फ़रमाया कि आर्हत वाड्मय में कहा गया है जो महर्षि होते हैं वो पराक्रम करते हैं। उनका पराक्रम कल्याण के लिए होता है। स्वयं और दूसरों के कल्याण के लिए, ऐसे ही महर्षि आचार्य तुलसी ने आज से सौ वर्ष पहले जन्म लिया,जन्म शताब्दी ख़तम होने को है। आचार्य तुलसी 20वीं सदी में धरती पर आये और 20वीं सदी में ही उन्होंने अंतिम श्वास लिया। उन्होंने अनेक प्रसिद्ध कार्य किये। उनका विरोध वि बहुत हुआ। पर विरोधों में न घबराना विरल होता है। दुनिया में अनेक लोग ऐसे होते हैं जो विघ्न बाधाओं से डर कर अधुरा कार्य छोड़ देते हैं। पर आचार्य तुलसी ऐसे संत थे जो विघ्न बाधाओं से न डर कर आगे बढ़ते थे।

तेरापंथ के वे अधिशास्ता, अनुशास्ता आचार्य थे। आचार्य तुलसी में उच्चता और गंभीरता दोनों थी। ऊंचाई और गहराई दोनों साथ मिलना मुश्किल होता है। पर वे ऐसे व्यक्ति थे जिनके पास दोनों गुण थे। मेरा जीवन मेरा दर्शन आचार्य तुलसी को जानने का अच्छा उपयोग है। मुझे क्षेत्रीय और कार्य-निकटता दोनों में रहने का मौका मिला। मुझे पथ दर्शन मिला। मैंने आचार्य तुलसी से 3 वरदान मांगे-



1) मैं काम और क्रोध को जीतने वाला बनू।
2) मेरा स्वास्थ्य प्रायः ठीक रहे।
3) मैं जैन धर्म की सेवा कर सकूँ।

कल सूर्योदय के साथ इस वर्ष की समाप्ति मानी जानी चाहिए। इस वर्ष में कितने कार्यक्रम हुए मैंने मुख्यतः 2 कार्य कीये।

1)अणुव्रत का 
2) महाव्रत का। 

महाव्रत में 100 मुनि दीक्षा हो गई महाव्रत का भी काम आगे बढ़ा। कोई कार्य करने पर नाम की लालसा नहीं रखनी चाहिए। इन कार्यक्रमों में कितनो का योग्दान रहा। चार चरणों में मैं बीदासर में हुए 43 दीक्षा के चरण को महाचरण मानता हूँ।