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हमारी बुद्धि व ज्ञान का उपयोग सम्यक हो - मंत्री मुनि श्री सुमेरमल जी

11अक्टूबर 2014 ! अणुव्रत शिक्षक संसद के 22वें अधिवेशन के प्रथम दिन, वर्धमान समवसरण में समुपस्थित देश के कोने कोने से आये शिक्षकों को मार्गदर्शन प्रदान करते हुए मंत्री मुनि श्री ने फ़रमाया कि प्राचीन ग्रंथों में आता है हमारी बुद्धि व ज्ञान का उपयोग सम्यक हो। ज्ञान का उपयोग पीड़ा पहुँचाने के लिए नहीं, परोपकार के लिए होना चाहिए। ज्ञान रचनात्मक भी होता है और विध्वंसात्मक भी। नीतिकारों ने शिक्षा को स्वयं रचनाकार व विधाता कहा है। क्योंकि वे भावी पीढ़ी का निर्माण करते हैं।

मुनि श्री ने शिक्षकों के आदर्श बताते हुए कहा कि शिक्षक वह व्यक्ति हो सकता है जिसका स्वयं का जीवन आदर्श जीवन हो, शिक्षा के साथ संस्कृति व रचनात्मकता को बढ़ाने वाला हो। शिक्षक का चरित्र अच्छा होना चाहिए। नैतिकता व व्यवहार की बात बताने वाला हो। एक शिक्षक चाहे तो हजारों व्यक्तियों को बदल सकता है। व्यक्ति स्वयं अनुप्रेक्षा करे तो बदलाव संभव है। लेकिन व्यक्ति स्वयं की ओर देखता ही नहीं, बाहर की ओर देखता है। तो सभी शिक्षक जीवन विकास व समाज निर्माण का कार्य करते रहें।

अणुव्रत प्राध्यापक मुनि सुखलाल जी ने अणुव्रत शिक्षक संसद के राष्ट्र व्यापी कार्यों की प्रशंसा करे हुए कहा कि प्रतिदिन लगभग डेढ़ लाख विद्यार्थी नैतिकता, राष्ट्रीयता की अणुव्रत प्रार्थना अपने विद्यालयों में गाते हैं। यह देशभक्ति व सतचरित्र को पुष्ट करने का उपक्रम है। अब तक 2,22,66,734 व्यक्तियों को नशा मुक्ति के संकल्प दिलाये हैं।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उत्तर क्षेत्र संघ प्रचारक माननीय रामेश्वर जी उपस्थित थे। उन्होंने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम का सुन्दर सञ्चालन दिनेश मुनि ने किया।