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हमारे जीवन में विनम्रता और सम्मान का भाव आना चाहिए - आचार्य महाश्रमण



नई दिल्ली, 27 अक्टूबर 2014 आज अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण जी ने वर्धमान समवसरण में समुपस्थित कोलकाता से समागत संघ व विशाल जनमेदनी को संबोध प्रदान करते हुए फ़रमाया कि आर्हत वाड्मय में कहा गया-आदमी के अन्दर संस्कार हैं, विभिन्न भाव हैं।
आयरो में कहा कि यह आदमी विभिन्न विरोधी भावों वाला है। कभी जिसको संतोषी देखा था उसे कभी लोभ में भी देखा जा सकता है। यह पॉजिटिव नेगेटिव चलता रहता है। वीतराग को यह सब नहीं सताते। व्यक्ति में अहंकार भी आ जाता है।

मैं अमीर व्यक्तियों को 3 सलाह देता हूँ।
1) पैसे का घमंड नहीं करना चाहिए।
2) धन के प्रति ज्यादा मोह नहीं रखना चाहिए। क्यों कि कफ़न में जेब नहीं होती है। फिर भी व्यक्ति की आसक्ति नहीं छूटती। आचार्य महाप्रज्ञ जी इच्छापरिमाण और भोगोपभोग परिसीमन की बात करते थे। यह व्रत जीवन में आते हैं तो लोभ पर ब्रेक लग सकता है।
3) धन का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। व्यसनों में रूढ़ियों में पैसे को नहीं गवाना चाहिए। आदमी के जीवन में पैसे का सदुपयोग होना तो ठीक है। पर गलत कार्यों में पैसे का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।

अहंकार को छोड़ने से बात बन सकती है। हमारे जीवन में विनम्रता और सम्मान का भाव आना चाहिए। किसी को सम्मान देना वात्सल्य देना बहुत बड़ी बात होती है। बड़ों से छोटो को वात्सल्य और छोटों से बड़ो को सम्मान मिले तो संगठन या संघ आगे बढ़ सकता है। जैन आग़मों में स्वर्ग और नरक का विवरण आता है। 2 प्रकार के स्वर्ग हैं- एक जिसमे इंद्र होते हैं और एक जिसमें नहीं। विवरण आता है की आचार्य भिक्षु 5वें देवलोक और सीता जी 12वें देवलोक के इंद्र हैं। ऊपर के स्वर्ग में (अनुतर विमान और नव गैवयक में) एक इंद्र नहीं होता वहाँ सब अहमिन्द्र होते हैं। पर वर्तमान समाज में सारे नेता बन जायें तो काम नहीं चलेगा।


विनम्रता का भाव जाग जाये तो अहंकार हट सकता है। श्रावकों को मैं देखता हूँ कि कितनी विनम्रता रखते हैं। साधुओ के सामने तो सभी झुकते हैं। देवता भी झुकते हैं। कहा गया की "देवा वि तं नमन्सन्ति,जस्स धम्मे सयामणो।" अर्थात देवता भी उसे नमस्कार करते हैं जिसका मन धर्म में रमा रहता है। दूसरों को अपने अधिक में रखने की भावना है और खुद दूसरो की बात नहीं मानता इसका मतलब अहंकार का भाव है। अहंकार की पूर्ती न होने से गुस्सा आता है। गुस्सा और अहंकार का जोड़ा है। दोनों द्वेष के अंग हैं। माया और मान राग के अंग हैं। राग और द्वेष विजेता बनें। और अहंकार को छोड़ने का प्रयास करें।

कोलकाता संघ ने सामूहिक गीतिका का संगान किया। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मण्डल की राष्ट्रिय अध्यक्षा श्रीमती सूरज बरड़ीया ने अहिंसा एक्सप्रेस झांकी की प्रस्तुति दी। मंत्री मुनि श्री ने प्रेरणादायक व मार्मिक उद्बोधन में धर्म संस्करों को पुष्ट करने की बात कही। उपस्थित जनता पूज्यप्रवर के दर्शन व आशीर्वचन पा रोमांचित हो गई। खचाखच भरे प्रवचन पंडाल की छटा देखते ही बनती थी। कार्यक्रम का कुशल सञ्चालन मुनि श्री जयंत कुमार जी ने किया।