नई दिल्ली, 6 नवम्बर, 2014 अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के चातुर्मास सम्पन्नता के शुभ अवसर पर मंगल भावना द्वितीय चरण का आयोजन अध्यात्म साधना केन्द्र के वर्धमान समवसरण में हुआ। आचार्यश्री ने मंगल उद्बोधन में कहा कि ऋषी मुनियों के लिए विहार चर्या होती है। जिस प्रकार स्वच्छ जल प्रवाह द्वारा दुनिया में स्वच्छता फैलाता है वैसे ही सन्त मनीषी भी अपनी कल्याणकारी यात्राओं द्वारा जनमानस को आप्लावित करते हैं। परम्परागत राजा प्रदेशी एवं कुमार श्रमण केशी के रोचक व्याख्यान द्वारा आचार्यश्री ने बताया कि किस प्रकार घोर आप्ति प्रदेशी राजा कुमार श्रमण केशी के प्रवचनों को सुनकार आस्तिक बनकर आत्म कल्याण किया। धर्माराधना में योगभूत दिल्ली के सफल चातुर्मास हेतु अध्यक्ष के.एल. जैन पटावरी के नेतृत्व को एवं समस्त दिल्ली वासियों को आचार्य प्रवर ने अध्यात्म विकास का आशीर्वाद दिया।
इस अवसर पर शासनश्री मुनिश्री राकेश कुमारजी, प्रो. मुनि महेन्द्रकुमारजी, जीवन विज्ञान प्राध्यापक मुनिश्री किशनलालजी एवं साध्वीवृन्द ने अपनी मंगल भावनाएं रखी। मुख्य नियोजिका विश्रुत विभाजी 'एजूकेषन फार ब्लीष एण्ड डवलपमेन्ट', साध्वी डा. मुदित यशा जी द्वारा 'विषेशावष्यक भाष्य' एवं अणुव्रत प्रोफेसर मुनिश्री सुखलालजी द्वारा 'प्रकाश की रेखाएं' पुस्तक प्रस्तुत हुई जिन्हें आचार्य प्रवर ने लोकार्पित किया।
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष के.एल. जैन पटावरी ने सभी विभागों व सम्भागियों का धन्यवाद करते हुए बताया कि इस चातुर्मास में लगभग 6 लाख लोगों ने भोजनशाला में भोजन किया, हजारों यात्रियों ने धर्म लाभ लिया। देश-विदेश के अनेकों राजनेता बुद्धिजीवि प्रशासनिक अधिकारी, व्यापारी व सेलीब्रेटीज ने भी आचार्यश्री से मार्गदर्शन पाकर धन्यता का अनुभव किया।