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ताजमहल केवल प्रेम का ही प्रतीक नहीं है बल्कि यह प्रतीक है समर्पण का - आचार्य महाश्रमण

ताजमहल से संत ने दिया सौहार्द का संदेश

बुधवार, 10 दिसंबर 2014 शोभना, अनुपमा जैन आगरा। प्रेम के अमर स्मारक 'ताजमहल' से एक संत ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, नैतिकता और समाज में सौहार्द कायम करने का संदेश दिया है। जैन मुनि महाश्रमण के ससंघ अपनी  अहिंसा यात्रा' के आगरा पड़ाव में पहुंचने पर ताजमहल के सामने यह संदेश दिया।
महाश्रमणजी ने कहा कि ताजमहल केवल दुनियावी प्रेम का ही प्रतीक नहीं है बल्कि यह प्रतीक है समर्पण का, सहिष्णुता का, संबंधों के आदर का, प्रेम के अनवरत प्रकाश का। यह प्रेम मानवता के प्रति है, ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण भाव का है, जो जीवमात्र से प्रेम, दया सिखलाता है। ऐसी व्यवस्था की सीख देता है, जहां सिंह और बकरी एक ही घाट से पानी पीते हैं। इससे पूर्व महाश्रमणजी का यहां पहुंचने पर श्रद्धालुओं व विभिन्न धर्मों के धर्मगुरुओं ने भव्य स्वागत किया। आचार्यश्री ने कहा कि यह प्रसन्नता की बात है कि आज ही के दिन भारत के एक नागरिक को दूर देश नॉर्वे में विश्व में शांति का नोबेल पुरस्कार दिया जा रहा है। भारत शांति का प्रणेता रहा है। इन मूल्यों का विश्व-प्रचारक रहा है। हिंसा और तनाव से जूझ रहे विश्व में अहिंसा और शांति के मूल्यों को पुनर्स्थापित किए जाने की बहुत जरूरत है। अहिंसा यात्रा इसी संदेश के साथ निकली है। उन्होंने कहा कि सेवाभाव हमें समर्पण सिखाता है और सेवाभाव से मानवीय मूल्यों के प्रति पूर्ण समर्पण ही सही मायने में ईश्वर की पूजा है। उन्होंने कहा कि प्रेमनगरी के नाम से जाने वाले आगरा में विशेष तौर पर दो देवताओं का वास जरूर होना चाहिए- एक नैतिकता और दूसरा सौहार्द का। इस यात्रा में सक्रियता से जुड़ी हुईं साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने भी कहा कि अणुव्रत की मूलभूत नींव नैतिकता पर टिकी हुई है। समाज, संस्था, परिवार आदि के प्रति नैतिक निष्ठा होनी चाहिए। जिसके जीवन में नैतिकता होती है वह व्यक्ति व्यवस्थित एवं निर्भय होकर जी सकता है। अनैतिकता में भय रहता है और वहीं नैतिकता में अभय, अतः हर क्षेत्र में प्रामाणिकता के साथ नैतिक निष्ठा होनी चाहिए। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण के 4 मास के दिल्ली चातुर्मास के 1 दिन पश्चात गत 9 नवंबर को लाल किले के ऐतिहासिक प्रांगण से यह विश्व अहिंसा शोभायात्रा प्रारंभ हुई थी। इस मौके पर बड़ी तादाद में श्रद्धालुओं के अलावा नेपाल के उपराष्ट्रपति परमानंद झा, परमार्थ आश्रम के संस्थापक स्वामी चिदानंद एवं अन्य धर्मगुरु उपस्थित थे। यह पदयात्रा सन् 2018 तक चलेगी। आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति संयोजक कन्हैयालाल पटावरी के अनुसार आचार्य महाश्रमण विश्व के इतिहास का एक नया अध्याय रचते हुए 2018 तक नेपाल, भूटान सहित देश के 12 राज्यों में 10 हजार किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर रहे हैं। अहिंसा यात्रा के लिए निर्धारित पथ में नेपाल, भूटान, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, असम, मेघालय, सिक्किम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उड़ीसा आदि देश राज्य होंगे। इस यात्रा के दौरान बड़ी तादाद में श्रद्धालु जुड़ रहे हैं और अहिंसा के सिद्धांत के साथ-साथ सद्भावना, सौहार्द व नशामुक्ति का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। नेपाल के उपराष्ट्रपति परमानंद झा ने कहा है कि आचार्यश्री महाश्रमण केवल जैन धर्म के ही आचार्य नहीं, अपितु जन-जन की चेतना का जागरण कर विश्वगुरु की भूमिका निभा रहे हैं। साध्वी प्रमुख कनकप्रभा, मंत्री मुनि सुमेरमल, हरियाणा की पूर्व शहरी विकास मंत्री सावित्री जिंदल, अहिंसा यात्रा प्रबंधन समिति के संयोजक कमल कुमार दुगड़, आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति संयोजक कन्हैयालाल पटावरी इस यात्रा से सक्रियता से जुड़े हैं। पटावरी ने बताया देश के गांवों-शहरों से होकर निकलने वाली इस 10 हजार किलोमीटर की पदयात्रा की सफलता के लिए अनुष्ठान किए गए। यात्रा की एक विशेषता यह है कि इस यात्रा में श्रद्धालु युवाओं की एक सफाई मंडली भी रहेगी, जो रास्ते तथा आसपास की गंदगी साफ करेगी और स्वच्छता का संदेश देती चलेगी। भारत के सभी प्रमुख राज्यों की और नेपाल, भूटान तक जाने वाली अहिंसा यात्रा अहिंसा, शांति और नैतिक मूल्यों के प्रचार-प्रसार का संदेश दे रही है। गौरतलब है कि अहिंसक चेतना के जागरण व नैतिक मूल्यों के विकास हेतु वर्ष 2001 में आचार्य महाप्रज्ञ ने भी अहिंसा यात्रा की थी जिससे इन मूल्यों का घर-घर प्रचार हुआ था। गौरतलब है कि इस पूरी यात्रा के दौरान भी आचार्य महाश्रमण अपने गुरु आचार्य महाप्रज्ञ के साथ रहे। यात्रा के एक प्रवक्ता के अनुसार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने आचार्य महाश्रमण को राजकीय अतिथि घोषित किया है। स्वामी चिदानंद सरस्वती ने हरिद्वार-ऋषिकेश में अहिंसा यात्रा को आमंत्रित किया है।