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समता व साधना का समंदर हो भीतर : आचार्य श्री महाश्रमण

27 नवम्बर 2014. हनुमान आश्रम, वृन्दावन.

अहिंसा यात्रा के प्रणेता महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी की अहिंसा यात्रा श्री कृष्ण की कर्म भूमि वृन्दावन में पहुंची। वृन्दावन के हनुमान आश्रम में समुपस्थित श्रधालुओं को संबोधित करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया-हमारे जीवन में द्वंद्वात्मक स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं। एक अनुकूल और एक प्रतिकूल स्थिति। इन दोनों प्रकार की स्थितियों में सम रहना साधना होती है। समता को धर्म कहा गया है। जीवन में कभी लाभ हो जाये, कभी नुकसान भी हो जाये। लाभ में ज्यादा खुश ना होना व हानि में दुखी न होना ही समता की साधना है। इसी प्रकार शरीर में कभी साता कभी असाता दोनों स्थितियों में सम रहें। मान-अपमान, प्रशंसा-निंदा में भी व्यक्ति सम रहने का प्रयास करना चाहिए।

परन्तु व्यक्ति अनुकूलता में राग में चला जाता है, प्रतिकूलता में द्वेष में चला जाता है। पूज्यप्रवर ने दृष्टान्त के माध्यम से समझाया की सूर्य उदय व अस्त दोनों समय एक ही रंग का होता है। दोनों विरोधी स्थितियां हैं फिर भी सूर्य एकरूप है। उसी प्रकार हमें समता की साधना करनी चाहिए। साधू को तो विशेष रूप से समता की साधना करनी चाहिए। भगवन महावीर समता की प्रतिमूर्ती थे। हम साधू लोग उनका अनुसरण करने का प्रयास करें। लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, प्रसंशा-निंदा, मान-अपमान आदि में सम रहना चाहिए। हम भगवान महावीर की साधना को देखें एक और चंडकौशिक सांप दंश लगा रहा है और एक और इंद्र ने नमस्कार किया। प्रभु दोनों स्थितियों में सम रहे। ऐसे समत्व के धनी भगवान महावीर को नमस्कार।

अपने जीवन में समता का विकास करना चाहिए तथा विवेक से कार्य करने के बाद जो परिणाम आ जाये उसी में समता रखनी चाहिए। यह मन अनेक चितों वाला है कभी शोक में चला जाता है कभी हर्ष में चला जाता है। यह हमारी दुर्बलता है। इसे कम करने का प्रयास करना चाहिए। संत तो समता के सागर होते हैं। जो अशांत रहता है वो या तो संत है नहीं। या फिर उसकी संतता में कमी है। जिसके जीवन में समता धर्म आ गया उसके जीवन में मंगल भी आ गया। धर्म अपने आप में उत्कृष्ट मंगल है। और धर्म आ गया तो मंगल भी आ गया। आनंद भी आ गया। तो हम समता की साधना करें तो आनंद की साधना हो सकेगी।

साध्वी प्रमुखाश्री जी ने कहा वृन्दावन श्री कृष्ण की भूमि है। यहाँ स्थान स्थान पर राधा कृष्ण के मंदिर हैं, तो ऐसा लगता है मानो सब कुछ कृष्णमय है। साध्वी प्रमुखाश्री जी ने समता की साधना का भी उपदेश दिया। मंच का सञ्चालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।