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अणुव्रत शिक्षक संसद के 24 वर्ष पूर्ण

1 दिसम्बर 2014,बादगाँव, मथुरा.
आज अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य महाश्रमण जी ने अणुव्रत शिक्षक संसद के 24 वर्ष पूर्ती के अवसर पर समुपस्थित श्रद्धालु समाज को दिशाबोध देते हुए फ़रमाया कि आर्हत वाड्मय में "संजमो" शब्द आता है। संयम एक बड़ी निधि है। आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन का प्रवर्तन किया था।अणुव्रत का कोई प्राण तत्व है तो वह है-"संयम"। आचार्य तुलसी ने घोष दिया "संयमः खलु जीवनं"। अभी वर्त्तमान में भी तुलसी जन्म शताब्दी का घोष निर्धारित किया गया था-"जन जन में जागे विश्वास, संयम से व्यक्तित्व विकास"। जन जन के मन में यह विश्वास जागना चाहिए की संयम से ही व्यक्तित्व का विकास, चेतना का उत्थान, आत्मा की निर्मलता संभव है।


अहिंसा को एक दीपक से उपमित किया जा सकता है। अहिंसा के दीपक को सभी अपने जीवन में प्रज्वलित करें। आज ही के दिन अणुव्रत शिक्षक संसद जो की हमारी एक संघीय संस्था है, उसकी शुरुवात हुई थी। आज यह संस्था 24 साल की युवा हो चुकी है। किसी भी संस्था के लिए 3 power अपेक्षित होते हैं-
1)man power 
2) money power 
3) management power 
हिंसा के 3 प्रमुख कारण हैं - अभाव, अज्ञान, आवेश। इन्हीं के कारण आदमी हिंसा में जाता है। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने अहिंसा प्रशिक्षण की बात की थी। हृदय परिवर्तन, आजीविका प्रशिक्षण आदि उसी के आयाम हैं।


आदमी का खानपान स्वस्थ रहे। व्यक्ति नशे की ओर न जाए। खाने में भी तामसिक खानपान न हो। वह व्यक्ति में तामसिक वृत्तियों को बढ़ने वाला होता है। कार्यकर्ता की वास्तविक शक्ति वक्तृत्व व चरित्रात्मक शक्ति ही होती है। अ.शिक्षक संसद के 24 वर्ष पूर्ती पर गुरुदेव ने कहा 24 का अंक प्राकृतिक रूप से महत्वपूर्ण है। 24 तीर्थंकर होते हैं, दिन में 24 घंटे, 24 अवतार, 24 मिनट की 1 घड़ी। तो गुरुदेव तुलसी का यह आन्दोलन आगे और प्रगति करे। साध्वी चारित्रयशा जी ने "साधना ही शांति का आधार" गीतिका का सुमधुर संगान कर जनता को मंत्रमुग्ध कर दिया।