वर्धमान हमारे आचरण में हो : आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी
23 दिसम्बर, ग्वालियर. आचार्य श्री महाश्रमण जी ने जैन छात्रावास में वर्धमान महोत्सव के अंतिम दिन प्रवचन में प्रमाद के बारे में बताया हुए फरमाया की प्रमादी लोग से ही गलती होती है। इसलिए गलतियों के परिष्कार का अवसर भी दिया जाना चाहिए।
वर्धमान की प्रेरणा मिले, वर्धमान हमारे दिल में हो, हमारी वाणी में आए, यह अच्छी बात है लेकिन वर्धमान हमारे आचरण में आए यह जरुरी है। इसके लिए वर्धमान जैसी साधना की जरुरत है।
आचार्य श्री ने कहा की वर्धमान महावीर की साधना निराली थी। उनकी साधना की तुलना करना कठिन है, तुलना की बात सोचना भी सामान्य बात नहीं है। साढ़े बारह वर्ष उन्होंने सतत साधना कर कितने कष्ट सहन किए। उन्होंने कहा की साधु का कर्त्तव्य है की वह साधुत्व की सुरक्षा करे, आचरण के प्रति जागरूक रहे और कषाय प्रतनुकरण की साधना
करे। प्रमाद देख कर दुर्जन हँसते है जबकि सज्जन व्यक्ति उसका समाधान करते है। मनुष्य से जाने-अनजाने में कोई गलती हो जाए तो उसे स्वीकारने का साहस होना चाहिए।
साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभा जी ने सम्पूर्ण धर्मसंघ को वर्धमानता की प्रेरणा दी।