151वें मर्यादा महोत्सव के पावन अवसर पर
परमपूज्य आचार्यश्री महाश्रमण द्वारा रचित गीत
विनत हो हम करते शासन का सम्मान।।
प्रणत हो हम करते मर्यादा का मान।।
भैक्षव गण की शरण में हम करें आत्म-उत्थान।।
(जिन-शासन की शरण में हम करें आत्म-उत्थान।।
परमात्मा की शरण में हम करें आत्म-उत्थान।।
निज आत्मा की शरण में हम करें आत्म-उत्थान।।)
1. आत्म साधना की प्रगति में निरत रहें दिन रात।
प्रतनुकषायी हम बनें सब चिन्तन हो अवदात।।
2. भैक्षव गण का शुभ विभूषण सेवा रहे सदैव।
विमल निर्जरा भावना से विशद बनें स्वयमेव।।
3. गुरु आज्ञा-अनुसरण में हो किघिचद् भी न प्रमाद।
मधुर परस्परता रहे हम करें न व्यर्थ विवाद।।
4. उज्ज्वलता आचार की हो करें सतत सद्यत्न।
रखें सुरक्षित जिन्दगीभर पावन संयमरत्न।।
5. संवत् पन्द्रह कानपुर गुरु तुलसी पावस-वास।
सन् पन्द्रह में कानपुर में मर्यादोत्सव खास।।
6. भिक्षु स्वामी की कृपा से यात्रा हो निर्बाध।
तुलसी विभुवर की कृपा से यात्रा हो निर्बाध।
महाप्रज्ञ प्रभुवर कृपा से यात्रा हो निर्बाध।
‘महाश्रमण’ आगे बढें हम, मिलें कुशल संवाद।।
लयः- चित्त मैं बसिया रे श्री तुलसी गुरुराज
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