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विद्यार्थी बने परिश्रमी : आचार्य श्री महाश्रमण जी

परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी का आज का प्रवास ओंग ग्राम के आदर्श जनता इंटर कोलेज में हुआ. विद्यालय के बच्चों को संबोधित करते हुए आचार्यप्रवर ने फरमाया कि जो विद्यार्थी विनय सीख लेता है, जिसके जीवन में विनम्रता आ जाती है वह विद्यार्थी शिक्ष को प्राप्त कर सकता है. ज्ञान से ज्यादा दुनिया में कोई पवित्र वस्तु नहीं है.  विद्यार्थी के जीवन में ज्ञान व् संस्कार दोनों का योग है. ज्ञान का सार आचार है. अभ्यास से कार्य सिद्ध होते है. ज्ञान प्राप्ति के लिए विद्यार्थी को परिश्रमी होना चाहिए. केवल मनोरंजन एवं कल्पना मात्र से कार्य सिद्ध नहीं होते.  विद्यार्थी उंचा लक्ष्य रखते हुए सम्यक पुरुषार्थ करें तो सफलता प्राप्त होती है.  पूज्य्प्रवर ने "लक्ष्य हैं उंचा हमारा, हम विजय के गीत गाएं." गीत का संगान करते हुए फरमाया हम कठिनाइयों से न डरे. हमारी में सूरज सी तेजस्विता, चाँद जैसी शुभ्रता एवं शीतलता एवं पवन जैसा वेग लेकर हम संतुलित गति से सही दिशा में आगे प्रगति करे. पूज्य्प्रवर ने आगे फरमाया कि-तीन श्रेणी के व्यक्ति होते है. एक जो विध्न के भय से कार्य प्रारम्भ ही नहीं करते वह निम्न श्रेणी के व्यक्ति है, दुसरे वह जो कार्य प्रारम्भ तो करते है किन्तु थोडा विघ्न आने पर कार्य को बीच में अधुरा छोड़ देते है. तीसरे उत्तम श्रेणी के पुरुष वो है जो कार्य उत्साहपूर्वक शुरू भी करते है एवं विध्नों से प्रतिहत होने पर भी कार्य को सफलता तक पहुंचाने का प्रयास करते है. 
ग्राम ओंग के बारे में फरमाते हुए पूज्यवर ने कहा कि ओंग गांव में आए हैं और ओम का साधना की दृष्टि से बड़ा महत्त्व है. पूज्यप्रवर ने ॐ की ध्वनि का उचारण करवाया एवं अहिंसा यात्रा के त्रिआयामी उद्देश्यों के बारे में जानकारे प्रदान की. पूज्यप्रवर की प्रेरणा से बच्चों ने सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति के संकल्प ग्रहण किए. 
विद्यालय के प्रधानाचार्य श्रीचंद आर्य ने पूज्यप्रवर को वंदना करते हुए कहा कि-अहिंसा यात्रा की आज पुरे विश्व को जरूरत है. आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ये जो बीड़ा उठाया है उस हेतु आनेवाला भारत आपके इस प्रयास को याद रखेगा. विद्यालय के संरक्षक श्री सुरेन्द्र शुक्ला ने विचाराभिव्यक्ति दी. विद्यालय के प्रधानाचार्य को जीवन विज्ञान का पाठ्यक्रम भेंट किया गया. कार्यक्रम  का संचालन मुनिश्री दिनेशकुमारजी ने किया. 


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