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विरक्ति हो तो मोक्ष दूर नहीं- आ.महाश्रमण

आचार्य श्री महाश्रमण जी ने प्रात:कालीन प्रवचन में उपस्थित सभा को संबोधित करते हुए फ़रमाया कि कुछ मनुष्यों में इतना वैराग्य भाव उत्पन्न हो जाता है की वे निष्क्रमण कर देते है । श्रद्धा के साथ घर से निकल पड़ते है और उत्तम पर्याय स्थान साधुत्व को स्वीकार कर लेते है, साधुत्व को जिस श्रद्धा से उसे स्वीकार किया उस श्रद्धा से उसे पालित भी करना चाहिए ओर हो सके तो ओर वैराग्य भाव बढ़ जाये ऐसा प्रयास होना चाहिए । आचर्य श्री ने आगे फ़रमाया की मानव जीवन मिल जाये और फिर साधु तो......कहना ही क्या ? और साधुत्व के साथ वीतरागता प्राप्त हो जाये ओर भी अलग महिमा हो जाती है । आचर्य प्रवर ने आगे कहा जो दुर्लभ मानव जीवन को व्यर्थ में गँवा दे वे आदमी कैसे होते है उसके कुछ उदाहरण देते हुए कहा वे आदमी कैसे लगते है जो सोने के थाल में कूड़ा कर्कट डालता है,जो अमृत को पैर धोने के काम में लेता हैै जो श्रेष्ठ हाथी से लकड़ियो का भार वहन करता है और जो कौवे को उडाने के लिए चिंतामणि रत्न को फेंक देता है ये आदमी जैसे नासमझ होते है उसी प्रकार जो आदमी दुर्लभ मानव जीवन को प्रमाद में गँवा देता है वह भी ऐसा ही आदमी होता है । आचार्य श्री ने फरमाया कि जो वैराग्य भाव से साधना करता है वह इस जीवन को सार्थक बना लेता है । हमारे जीवन में वैराग्य का बड़ा महत्व है साधना में तो वैराग्य मानो प्राण है । पूज्य प्रवर ने वैराग्य के बारे में आगे बताया कि अर्हत देवो को नमस्कार करना ,सदगुरु की सेवा करना और असीम कष्ट वाली तपस्या करना, जंगल में निवास करना, इन्द्रिय दमन की विद्या को प्राप्त करना ये सब चीजे मोक्ष देने वाली हो सकती है । अगर भीतर में वैराग्य है तो ! वैराग्य नहीं है और उपरोक्त चीज दिखावेे के लिए की जाती है तो ये ज्यादा लाभ देने वाली नहीं होती है । साधना में मन लग जाये ओर विरक्ति के भाव हो तो मोक्ष दूर नही , इसलिए साधना में मन लगाना चाहिए और सोई हुई चेतना को जगाने का प्रयास करे । ज्यादा गुस्सा नहीं करना चाहिए , सहज समता को बनाये रखने का प्रयास हो, हम अभिमान ना करे , छलना वंचना से बचे ओर सरलता से पेश आये , लोभ सर्व विनाशकारी है इससे बचे ओर कामना पर नियंत्रण करे । दूसरो की उन्नति देख कर खुश हो इर्ष्या नही करे आचार्य श्री ने कहा मनोरंजन आत्म रंजन राग पर विराग ओर भोग पर योग का अंकुश होना चाहिए ओर जब वैराग्य आ जाये तब प्रवजीत होने की दिशा में बढ़ने का प्रयास करना चाहिए ।             कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री दिनेश कुमार जी ने किया ।