पुरइन के पोलीटेक्निक इलाहबाद कोलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड मेनेजमेंट में अपने प्रवचन के दौरान उपस्थितों को संबोधित करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि- राग-द्वेष को कम करना ही साधना का सार है. राग-द्वेष साधना के विपरीत है. साधना राग द्वेष की प्रवृत्ति अनुस्त्रोत है और निवृत्ति की साधना प्रतिस्त्रोत है. गृहस्थ भी राग-द्वेष मुक्ति की साधना करें.
हम आपसे बड़े है
परमपूज्य आचार्यवर ने प्रवचन में फरमाया कि साधू देवताओं से भी बड़े होते है क्योंकि देवताओं में चौथे गुणस्थान से अधिक नहीं होता परन्तु साधू में इससे भी आगे के गुणस्थान होते है. साधू देवता से इसलिए भी बड़ा होता है क्यूंकि साधू में त्याग होता है. देवता साधू से इस रूप में सक्षम है कि वे महाविदेह में जाकर तीर्थंकर के दर्शन कर सकते है. वो मौका यहाँ के साधू को नहीं मिलता.
पूज्यप्रवर की इस बात पर संयोजन कर रहे मुनि श्री दिनेशकुमारजी ने कहा कि- गुरुदेव ! हम आपसे बड़े है ! मुनि श्री के इतना कहते ही उपस्थित जनमेदिनी भौंचक्की रह गयी. पूज्यवर ने मुनिश्री की तरफ आश्चर्य से निहारा. संयोजंक मुनि ने भक्ति भाव के साथ कहा कि- गुरुदेव ! हम आपसे बड़े हैं क्योंकि हमारे छोटे से दिल में आप बसते है. इस तरह से हम बड़े हो गए.
पूज्य गुरुदेव के चेहरे पर इसे विनीत शिष्य का कथन सुनकर मुस्कान बिखर गयी. जनमानस ने ॐ अर्हम् की ध्वनि से हर्ष प्रकट किया.
परमपूज्य आचार्यवर ने प्रवचन में फरमाया कि साधू देवताओं से भी बड़े होते है क्योंकि देवताओं में चौथे गुणस्थान से अधिक नहीं होता परन्तु साधू में इससे भी आगे के गुणस्थान होते है. साधू देवता से इसलिए भी बड़ा होता है क्यूंकि साधू में त्याग होता है. देवता साधू से इस रूप में सक्षम है कि वे महाविदेह में जाकर तीर्थंकर के दर्शन कर सकते है. वो मौका यहाँ के साधू को नहीं मिलता.
पूज्यप्रवर की इस बात पर संयोजन कर रहे मुनि श्री दिनेशकुमारजी ने कहा कि- गुरुदेव ! हम आपसे बड़े है ! मुनि श्री के इतना कहते ही उपस्थित जनमेदिनी भौंचक्की रह गयी. पूज्यवर ने मुनिश्री की तरफ आश्चर्य से निहारा. संयोजंक मुनि ने भक्ति भाव के साथ कहा कि- गुरुदेव ! हम आपसे बड़े हैं क्योंकि हमारे छोटे से दिल में आप बसते है. इस तरह से हम बड़े हो गए.
पूज्य गुरुदेव के चेहरे पर इसे विनीत शिष्य का कथन सुनकर मुस्कान बिखर गयी. जनमानस ने ॐ अर्हम् की ध्वनि से हर्ष प्रकट किया.
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