10 फरवरी 2015 कसिया, उत्तरप्रदेश (JTN) परमपूज्य महातपस्वी आचार्य महाश्रमण जी ने समस्तजनों को आत्मा का बोध देते हुए आत्मवाद के विषय में फरमाया कि जैन दर्शन में आत्मा पर काफी प्रकाश डाला गया है। आत्मा को अमूर्त बताया गया है। इसमें कोई रंग भी नहीं होता। यह अवर्ण है। आत्मा शाश्वत है। आत्मा दो प्रकार की होती है- सिद्ध और संसारी। साधना द्वारा सभी कर्मों को नष्ट कर मोक्ष में चली जाती है वह मुक्त/सिद्ध आत्मा होती है।
आत्मा का अस्तित्व अनंतकाल पहले भी था, वर्तमान में है और अनंत काल बाद भी अस्तित्व बना रहेगा। आत्मा को काटा, छेदा, गीला, सुखाया, नहीं जा सकता। आत्मा असंख्य प्रदेशों (point) वाली है। आत्मा छोटी बड़ी हो सकती है। संसारी आत्मा ही कभी मुक्त आत्मा बनती है। जैन धर्म का स्पष्ट मत है कि आत्मा संसारी अवस्था से सिद्ध अवस्था को प्राप्त कर सकती है।
पूज्यप्रवर ने "प्रभुवर का जप कर लो" गीत का संगन किया और कहा कि साधुओं कि थोड़े समय की संगति भी पापों का नाश करने वाली होती है। संतों की शिक्षा को जीवन में उतार कर इस जन्म कोके साथ आगे के जन्म को भी अच्छा बनाया जा सकता है। मोक्ष को पाया जा सकता है।
मूलचंद जी नाहर, बेंगलोर द्वारा रास्ते की सेवा में चलाया जा रहा डेरा 'मनुहार' की तरफ से गीतिका प्रस्तुत की गई। आज पूज्यप्रवर का प्रवास कसिया में मधुपति वाचस्पति राजाराम आर्य इंटर कॉलेज में हुआ। पूज्यप्रवर ने बच्चों को, ग्रामीणों को अहिंसा यात्रा के उद्देश्यों से अवगत कराया। तथा सभी ने संकल्पों को ग्रहण किया।
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