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अनाशक्ति है मोक्ष का मार्ग - आचार्य श्री महाश्रमण जी

दिनांक : 7/3/2015, बोरसिया (गाजीपुर), उत्तरप्रदेश (JTN), एक दिवसीय प्रवास हेतु, परमाराध्य पूज्य गुरुदेव का आज, सत्यदेव इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (पॉलिटेक्निक कॉलेज) परिसर में पदार्पण हुआ। गुरुदेव का भावभीना स्वागत करते हुए, कॉलेज के चेयरमैन श्री सानंद सिंह जी ने कहा की -'जन कल्याण और देश के चरित्र निर्माण का मिशन लेकर चले एक महान संत आचार्य श्री महाश्रमण व अन्य साधु-साध्वियों के चरण आज इस कॉलेज में पड़े है, यह परिसर धन्य हो गया है। आचार्य जी को नमन करता हूँ। यह परिसर आपको समर्पित है, हम तो इसके चौकीदार मात्र है, और आपकी सेवा और अभिनन्दन करने का हमें सुअवसर सुलभ हुआ है। आप द्वारा करवाये जा रहे संकल्पों की छाप इस परिसर में भी रहे, यह कामना है।'
पुज्यप्रवर ने अपने प्रवचन में फ़रमाया -"अध्यात्म साधना के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण तल है- अनासक्ति। पदार्थ के प्रति ज्यादा मोहनिष्ट नहीं होना चाहिए। हम शरीरधारी हैं, अत: जीवन के लिए पदार्थों का प्रयोग आवश्यक हो जाता है। आदमी की सबसे बड़ी जरुरत भोजन और पानी है। इनके सुलभ होने पर आदमी का ध्यान वस्त्र और मकान की ओर हो जाता है। कपड़ा, रोटी और मकान प्राप्त होने पर व्यक्ति आभूषण, कार, सुविधा साधन की ओर आकर्षित हो जाता है, फिर शादी, संतान का मोह उसे आकृष्ट करने लगता है। जो व्यक्ति इन सभी पदार्थों को आसक्ति रहित भोगता है तो उसका मूल्य होता है। आसक्ति, लोभ, असंतोष और मोह सहित पदार्थों को भोगने वाला मार्ग संसार में भटकता रहता है और अनासक्ति, अलोभ का मार्ग मोक्ष मार्ग है। परिवार, समान आदि में कर्त्तव्य परायणता होती है, लेकिन आसक्ति से विलग होकर कर्तव्यों का निर्वाह करना उत्तम होता है। "अनासक्ति शांति का साधन है।"

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