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कर्मों के विधान में रिश्वत नहीं चलती


Aacharya mahashraman during his vihar
His Holiness Aacharya Shri Mahashraman Ji During His Vihar in Ahimsa Yatra, JTN File Photo.
परमाराध्य पूज्य गुरुदेव का आज, देवकली के हनुमान सिंह इंटर कॉलेज में एक दिवसीय प्रवास हेतु पदार्पण हुआ। प्रातः कालीन प्रवचन में, उपस्थित जनमेदिनी को संबोध प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया - "संसार में धन का महत्व होता है", क्योंकि जीवन की अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए अर्थ, की आवश्यकता होती है। जीवन में तीन स्तर की अपेक्षाएं रहती है - प्रथम है अनिवार्य अपेक्षा जैसे हवा, पानी और भोजन। द्वितीय है - आवास और वस्त्र संबंधी अपेक्षा। तृतीय है - शिक्षा और चिकित्सा आदि की अपेक्षा। इन सभी अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए आम तौर पर अर्थ की अपेक्षा रहती है। इसी लिए जीवन में पैसे का महत्व है। धन का महत्व है तो चारित्र का अधिक महत्व है। चारित्र की सुरक्षा जरुरी है क्योंकि चारित्र गया तो सब कुछ स्वाह हो जाता है। चारित्र नहीं है और पैसा है तो वह दुःख देने वाला बन सकता है। मायाचार, पापाचार, भ्रष्टाचार में संलग्न व्यक्ति धन से त्राण नहीं पा सकता है। क्योंकि कर्मों के विधान में कोई रिश्वत नहीं चलती, जो किया उनका फल भोगना ही पड़ता है। धन, व्यक्ति को नरक से नहीं बचा सकता है। प्रश्न हो सकता है कि क्या पैसे नहीं कमाने चाहिए ? उत्तर है, की अर्जन में नैतिकता रखनी चाहिए। बेईमानी के दो आयाम है - झूठ और चोरी। धन वालों में भी अशांति रह सकती है। यदि उनमें धन का अहंकार हो जाता है, यदि धन के प्रति उनके मन में ज्यादा मोह (आसक्ति) रहती है, यदि वे धन का दुरुपयोग करते हैं। शुद्ध भाव से दान देने से मन में शांति की सृजना होती है। दूसरों की भलाई में धन का उपयोग करने से मन में संतुष्टि रहती है।
आज चतुर्दशी के उपलक्ष्य में हाजरी का वाचन हुआ।
4.3.2015, देवकली गाँव (गाजीपुर),  जैन तेरापंथ न्यूज़ 

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