परमाराध्य आचार्य श्री महाश्रमण जी का आज
बिहार प्रान्त मेँ आवेश हो गया। बिहार राज्य का सीमान्त ज़िला सीवाण, भारत के प्रथम राष्ट्रपति डाo राजेंद्र प्रसाद
जी की जन्म और कर्मस्थली है। उत्तर प्रदेश को छोड़कर बिहार प्रान्त का गाँव तानुआ
मोड़ मेँ प्रवेश करने पर, स्थानीय विद्यालय के 500 के लगभग विद्यार्थियों ने भव्य स्वागत किया।
![]() |
H.H. Acharya Shri Mahashraman and Ahimsa Yatra Welcomed by Students of RBT Vidyalaya, |
WE SUPPORT AHIMSA
YATRA के नारे गूंजने लगे। मार्गवर्ती गाँवों के सैंकडो -
सैंकडों लोग, मुख्य मार्ग पर आकर, हाथ जोड़ कर, गुरुदेव का स्वागत करते थे। तानुआ
मोड़ के RBT विद्यालय में, एक दिन
के लिए गुरुदेव का पधारना हुआ। अपने प्रातः कालीन प्रवचन मेँ आचार्यवर ने फरमाया
-"आदमी सुनकर कल्याण और अकल्याण को जानता है, सुनकर
पाप को जान लेता है, करणीय - अकरणीय को किसी महापुरूष या
सज्जन व्यक्ति से सुनकर जानता है। जो व्यक्ति के लिए श्रेय है, हितकर है, उसका ही आचरण करना चाहिए। ज्ञान
गुरु, आचार्य या संतपुरुषों से भी प्राप्त हो सकता है और
ग्रन्थ या साहित्य को पढ़कर भी प्राप्त हो सकता है। अंधकार वहां जहां आदित्य नहीं
है, मुर्दा है वह देश जहाँ साहित्य नहीं है। जहाँ साहित्य
नही होता वहां ज्ञान की कमी रह जाती है। भारत तो ज्ञान का खजाना है। अनेक अनेक
भाषाओँ मेँ साहित्य उपलब्ध है। सुनकर या पढ़कर ज्ञान होता है, अतः सत्संगत का बड़ा महत्व माना गया है। भारत मेँ संतों के प्रति आकर्षण
भी है। सत्संगत से ज्ञान कि प्राप्ति, बुद्धि की जड़ता का
हरण, ईमानदारी के प्रति प्रेरणा, सम्मान की प्राप्ति, चित्त की प्रसन्नता की
प्राप्ति होती है। पाप भी दूर होता है और कीर्ति का प्रचार - प्रसार होता है। अतः
अच्छे पुरुषों की सदा संगति में रहना चाहिए; भोग - उपभोग
वादी, बुरे विचार वाले और दुराचारी लोगों की संगति से
हमेशा बचना चाहिए। टीo वीo और
समाचार पत्रों में प्रकाशित अच्छी बातोँ को ही ग्रहण करना चाहिए। मीडिया वाले भी
अच्छी - अच्छी बातोँ का प्रसारण करें यह जरूरी है।" मार्ग सेवा मेँ मुख्य
सहयोगी श्री पंकज डागा ने कहा कि महाश्रमण भगवान महावीर की धरती पर आचार्य
महाश्रमण जी का पधारना हुआ है। उन्होंने एक सुमधुर गीत 'कितने
हम सौभागी' का संगान किया।
दिनांक 16-03-15, तनुआ मोड़, ज़िला सीवाण, बिहार।
![]() |
Bihar People Welcoming, His Holiness Aachary Shri Mahahsraman ji and his Dhaval Sena, During Ahimsa Yatra |
0 Comments
Leave your valuable comments about this here :