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जीवन एक अबूझ पहेली है - मुनिश्रीविनयकुमार जी आलोक

चंडीगढ,18 मार्च, जीवन एक अबूझ पहेली है, जिसे सकारात्मक विचारो को अपनाकर व दुर्गम विचारो को मनो से निकाल कर खुशी से जिया जा सकता है।कुछ शाश्वत प्रश्न हैं कि जीवन का लक्ष्य क्या है? इसकी सफलता को कैसे परिभाषित किया जाए? सफलता के सूत्र क्या हैं? समय-समय पर जीवन के प्रति दृष्टिकोण भी परिवर्तित और संशोधित होता रहा है। इसे अध्यात्म के तल पर ही नहीं भौतिक और सामाजिक मानदंडों पर भी कसा जाता रहा है। इंसान सिर्फ जो सोचता है वही उसके कार्यो मे दिखता है। अगर इंसान की सोच ऊंची हेै ज्ञान का उजाला उसके मन के अंदर है तो वह जो कुछ भी देखेगा, सोचेगा ओैर बोलेगा उसका सब कुछ किया सुंदर है। क्योकि उसकी सोच सकारात्मक ऊंची व सबके भले के लिए हेै। आज दुनिया जो कुछ भी कर रही हेै सब अपने फायदे के लिए उससे कोई फर्क नही पडता कि उसके कार्य से किसी का दिल टूट रहा है। वह बस किए जा रहा है। आओ आज ऐसी सोच व मानसिकता को अपनाए जिससे यह जग एक सुंदर परिवार की तरह दिखने लगे।  ये शब्द मनीषी संत मुनिश्रीविनयकुमारजी आलोक ने कहे।

मनीषी श्री संत ने आगे फरमाया-आज हर कोई दूसरो को उपदेश देने मे लगा हुआ हेै कई जगह सुनने मे आया है कि अगर हम ऐसा कर दे तो यह संसार सुखी हो जाएगा लेकिन कोई पहल करता ही नही, सब यही सोचते  हेै कि वह दूसरा ही करेगा लेकिन अगर इन छोटी सोच को निकाल कर खुद आगे आकर सब पहल करे तो दुनिया को बदलेने मे ज्यादा समय नही लगेगा। मनुष्य को जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए और सदैव अपने लक्ष्यों के प्रति प्रयत्नशील रहना चाहिए, किंतु कोरा आशावाद कि मनवांछित प्राप्त हो जाएगा, प्राय: निराशा में परिवर्तित होता है, जो अधिक दुख देता है। मनुष्य की इच्छाशक्ति महत्वपूर्ण है, किंतु मात्र इच्छाशक्ति फलदायी नहीं होती। जीवन के यथार्थ को समझे बगैर जीवन का लक्ष्य समझ से परे और अप्राप्य रहता है। किसी ने धन, संपत्ति को और किसी ने शक्ति और पद को या कुल, जाति, शोहरत और विद्वता को अपना उद्देश्य बना लिया और इसे हासिल भी कर लिया। फिर भी जीवन में क्षोभ और असंतुष्टि कायम है।

जो प्राप्त हो गया है, वह स्थायी भी रहने वाला हो, किंतु शंकाएं सदैव व्यथित करती रहती हैं। शंकाओं का आधार इसलिए होता है, क्योंकि मनुष्य स्वयं ही यह आश्वस्त नहीं होता कि उसने अंतिम लक्ष्य को पा लिया। अपने गंतव्य तक पहुंच गया है।

मनीषी श्री ने अंत मे फरमाया-आओ सभी आज यह संकल्प करे जो कुछ भी ईश्वर ने हमे दिया है उसके लिए सदा शुक्रराना करे और जो हमारे जीवन मे नही हेै उनके ख्यालो को मनो से निकाल फेंके। क्योकि सब दुखो का कारण इच्छाएं है। अगर जीवन बिन इच्छा रहित हेै तो वही जीवन का सही आनंद ले रहा हेै। मनुष्य की कामनाएं और लोभ उसे सदैव संतोष से वंचित करते रहते हैं। कामनाएं, सकारात्मक प्रयासों के लिए प्रेरित तो कर सकती है, किंतु निश्चिंतता और संतुष्टि नहीं दे सकतीं। जीवन आशावाद के आकाश में नहीं यथार्थ के कठोर धरातल पर खड़ा है। जीवन के बहुआयामी कैनवास पर सुख और दुख दोनों हैं। यश भी है अपयश भी, सहायता है, साथ ही प्रतिरोध है। जीवन सदैव सुखों की बरसात नहीं करता और न ही सदैव दुख देता है। जीवन तो एक बहते झरने की तरह है अगर झरने की तरह जीवन मे ठहराव आ जाए तो जीवन नीरस हो जाता है, जैसे झरने के ठहरे पानी मे गंदगी फैलनी शुरू हो जाती है। इसी तरह जो भी समय मिला है उसका सदप्रयोग करते हुए जीवन के हर लम्हे को शुक्रराने के अंदर जिये और खुद भी खुश रहे है और अपने आस पास भी खुशी बिखरे।

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