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भगवान महावीर लोकोत्तम : आचार्य महाश्रमण

भगवान महावीर के 2614वें जन्म कल्याणक महोत्सव में शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी ने कार्यक्रम में उपस्थित नेपाल के राष्ट्रपति महामहिम डॉ. रामवरण यादव, भारतीय सांसद श्री जैसवाल जी तथा समुपस्थित विशाल जनमेदनी को संबोधित करते हुए फ़रमाया कि आर्हत वाड्मय में कहा गया है- "लोगुत्तमे समणे णाय पुत्ते"। भगवान महावीर को लोकोत्तम कहा गया है।
भगवान महावीर ने अपने जीवन में समता की साधना की थी । प्रभु महावीर की समता के सन्दर्भ में एक श्लोक बहुधा उत्तरित होता है  "पन्नगे च सुरेन्द्रे च निर्विशेष मनास्काय " ।एक और चंडकौशिक सर्प ने डसा तो भी समता और एक और सुरेन्द्र ने चरणों में वंदन किया तो भी समता रखने वाले वीर स्वामी को नमस्कार। संयोग की बात हम वीर स्वामी की जयंती वीरगंज में मना रहे हैं। क्षेत्र का नाम भी वीरगंज और हमारे प्रभु का भी नाम वीर । भगवान महावीर का नाम जैन धर्म से जुड़ा है। लेकिन मेरा यह मानना है कि ऐसी आत्माएं जो होती हैं वे सबकी होती हैं वे किसी एक देश वेश परिवेश की नहीं अपितु सबकी होती हैं। पूरा जगत उनसे प्रेरणा प्राप्त करें। तो ऐसे महापुरुषों के उपदेश सभी के लिए कल्याणकारी होते हैं। साढ़े बारह वर्षों की साधना के बाद महावीर ने सर्वज्ञता का वरण किया था।

भगवान् महावीर या जैन विद्या का एक सिधांत है अनेकान्तवाद। अनेकान्तवाद को वैचारिक अहिंसा के रूप में देखा जा सकता है। आपसी झंझट जो भी होते हैं वो दुराग्रह के कारण होते हैं। जो सामने वाले ने कहा है जरूरी नहीं की वो ही गलत हो। किसी अपेक्षा से वो भी सही हो सकता है। सामने वाले के विचार को भी समझने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए यदि समाज में अनेकांत, समन्वय, सहिष्णुता ये तत्व समाज में आ जाते हैं तो अच्छी बात है। भगवान् महावीर ऐसे पुरुष थे जिन्होंने सच्चाई का वरन किया था।
उन्होंने फ़रमाया - हम आज भगवान महावीर का जन्म कल्याणक मना रहे है और इस अवसर पर महा महिम राष्ट्रपति व भारत के सांसद की उपस्थिति होना भी एक अच्छी बात है।
 भगवान महावीर जैसे महापुरुष धरती पर आये और दुनिया को दिशा दी, यह इस दुनिया का महाभाग्य था। महावीर तो बहुत पहले हो गए। आज भी उनकी परंपरा चल रही है। आचार्य तुलसी और महाप्रज्ञजी ने जैन आगमों यानि भगवान की वाणी को संरक्षित या प्रसारित करने का प्रयास किया था। हम भगवान के बताए सिद्धांतों को अपनाने का प्रयास करें। इच्छा परिमाण को अपने जीवन में अपनाएं। विवेक और संयम से जीवन को अच्छा बनायें। यह दिवस हमारे जीवन को पावन बनाने वाला बने।
नेपाल के राष्ट्रपति रामवरण यादव ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए वर्गभेद, आर्थिक विषमता एवं हिंसा से जूझ रहे नेपाल के लिए आचार्य श्री महाश्रमणजी की अहिंसा यात्रा को आवश्यक बताया । उन्होंने कहा कि अहिंसा, समता और अनेकांत के सिद्धांतों को अपना कर हमारा जीवन उज्ज्वल और प्रकाशमय बने ऐसी हम कामना करते है। दूसरों के अस्तित्व के प्रति संवेदन शून्यता एवं असहिष्णुता के इस माहौल में आचार्यश्री के अहिंसा के सन्देश को ध्यान में रखकर इस पर बल दिया जाना चाहिए।  

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1 Comments

  1. आपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा,आपकी रचना बहुत अच्छी और यहाँ आकर मुझे एक अच्छे ब्लॉग को फॉलो करने का अवसर मिला. मैं भी ब्लॉग लिखता हूँ, और हमेशा अच्छा लिखने की कोशिश करता हूँ. कृपया मेरे ब्लॉग www.gyanipandit.com पर भी आये और मेरा मार्गदर्शन करें

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