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चार कषायों में राष्ट्रपति है लोभ - आचार्य श्री महाश्रमण जी

Aacharya Shri Mahashraman ji at Kathmandu with His Non Violence March (Ahimsa Yatra)

4 मई 2015, काठमांडू, नेपाल। Jain Terapanth News.
पूज्यवर ने आज के अपने मंगल प्रवचन में फरमाया कि गुस्सा भी कषाय होता है व माया, मान, लोभ भी कषाय होते हैं। चार कषायों में राष्ट्रपति है -लोभ। चौदह गुणस्थानों में ग्यारहवां गुणस्थान है - उपशांत मोह गुणस्थान। यह बंद गली के सामान है। इस गुणस्थान में एक बार आत्मा चली गई तो उसे एक बार तो वापिस लौटना ही पड़ेगा। क्षायिक श्रेणी वाली आत्मा ग्यारहवें गुणस्थान का उलंघन कर सीधी बाहरवें गुणस्थान में प्रवेश कर लेती है। गुरुदेव ने कहा कि तीन गुणस्थान अमर होते है - तीसरा, बाहरवां और तेरहवां। इन गुन्स्थानों में कोई मर नहीं सकता। हमारे हमारे पुनर्जन्म का आधारभूत कारण है- कषाय और उसका मुखिया है - लोभ। इसलिए साधना के क्षेत्र में लोभ को जीतने का प्रयास करना चाहिए। अनेक आकांक्षाएं आदमी के मन में आती रहती हैं- नाम व ख्याति की भी इच्छा रह सकती है। हम साधनैषणा करें। साधना की इच्छा करें। गुरुओं ने हमें साधना का मार्ग बताया। साधना का मार्ग बताना मुख्य बात है। हम वीरगंज से काठमांडू आये हैं, इन पहाड़ों में जिन्होंने रास्ता बनाया है उन्होंने अपने श्रम का कितना नियोजन किया होगा। अध्यात्म की साधना का भी मार्ग है और उस मार्ग को बतलाने वालों का बड़ा महत्व होता है। किसी की आत्मा को आध्यात्मिक संबल देना एक विशेष बात है। किसी को अभय का भाव देकर मानसिक शांति दे देने वाले उसके आने वाले जन्मों का भी मार्ग प्रशस्त कर देते हैं। लौकिक करुणा से भी आध्यत्मिक करुणा का ज्यादा महत्वपूर्ण होती है और यह देने वाले के लिए और जिसको दी जाय दोनों के लिए कल्याणकारी है।

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