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पुरूषार्थ विवेकपूर्ण व सम्यक हो: आचार्य महाश्रमण जी



Aacharya Shri Mahashraman ji at Bhagwan Mahavir Jain Temple, Kathmandu, Nepal


8 मई 2015, काठमांडू, नेपाल.JTN.
"आदमी के जीवन में पराक्रम का महत्व है। जीवन में उत्थान हो, पुरूषार्थ हो। पुरूषार्थ के साथ विवेक पूर्ण सम्यक् पुरूषार्थ हो।" यह मंगल वक्तव्य महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण ने भगवान महावीर जैन निकेतन के अध्यात्म समवसरण में प्रदान किया। पूज्यवर ने कहा कि भगवान महावीर ने साधना काल में बहुत पुरूषार्थ किया था। आज का स्थान भी भगवान महावीर के नाम से जुडा है। भगवान महावीर में पराक्रम था।

पूज्यवर ने कहा कि पहले के समय में केवल ज्ञानी साधु भी होते थे।आज नहीं हैं। विशेष लब्धियां साधुओं में होती थी। आज वे कहां हैं? साधना की दृष्टी से ह्रास की ओर गति हुई है। कालचक्र फिरआगे बढेगा तो हम फिर ह्रास से विकास की ओर आगे बढेंगे। भगवान महावीर ने साधना में पराक्रम करके कैवल्य की प्राप्ति की थी। मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने कहा कि अज्ञान जनित दुख वह है जिसमें व्यक्ति घटना को एक दृष्टिकोण से देखता है और दुखी हो जाता है। अज्ञान जीवन का एक बडा कष्ट है। पूज्यवर नें ऊँ जय वर्धमान भगवान गीत का श्रद्धासक्ति संगान किया।

पूज्यवर का आज से भगवान महावीर जैन निकेतन (जैन मंदिर) में प्रवचन प्रारंभ हुआ। पूज्यवर के स्वागत मे उपाध्यक्ष बच्छराज तातेड, महासचिव जगजीत सिंह सुराणा , मंजू बोटड, सभाध्यक्ष दिनेश नोलखा ने स्वागत वक्तव्य दिया। मुनि कमलकुमार जी ने अपनी पूर्व चातुर्मासिक भूमि पर पूज्यवर का स्वागत किया कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।

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