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His Holiness Aacharya shri Mahahsraman ji Addressing the People at Kathmandu Nepal. |
15 मई 2015, काठमांडू , JTN. जीवन में
दान के महत्व को बताते हुए परमपावन आचार्य श्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि दान का एक
अर्थ त्याग है। दान का सीधा अर्थ है देना। दान साधु संस्था के संदर्भ में भी चलता है
और गृहस्थ में भी चलता है। दान देने के पीछे उदारता की वृत्ति होती है, सहयोग की भावना
होती है, तब दान दिया जाता है। कभी कभी दुर्भावना से भी दान दिया जाता है। सद्भावना
से दान देना सहयोग करना उपकार की बात होती है। दान देना कईयों के लिये संभव हो सकता
और कईयों के लिए नहीं भी होता है। दान नहीं देने वालों में या तो उदारता की वृत्ति
नहीं होती या अपना कोई सिद्धान्त होता है।
लौकिक दान: दान के दो प्रकार- लौकिक और लौकोत्तर की व्यख्या
करते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि संसारिक दान जो लोक में स्तुत्य है वह लौकिक दान होता
है। दुनिया में व्यवहार को अच्छा बनाने वाला व्यवहार में चलने वाला दान। जैसे गरीब
है, भुखा है उसको रोटी, कपड़ा, पानी और निराश्रित को मकान आदि देना दान है। इस दान
का गृहस्थ के लोक व्यवहार में महत्व है। आदमी के पास शक्ति है वह दु:ख निवारण के काम
आती है, तो उसकी अच्छी उपयोगिता है। आदमी के पास वस्तुएं हैं, तो घर में पड़ी वस्तु
दूध नहीं देती। चीज तो पड़ी पड़ी खराब हो जाती है। गरीब को देने से वस्तु का उपयोग
हो जाता है। सामने वाले की समस्या का समाधान हो जाता हैं। अनेकों लोग पशु पक्षियों
को दाना चुग्गा डालते हैं यह भी एक दान है। इस प्रकार के दान लौकिक दान हैं।
लोकोत्तर दान - ज्ञान दान, संयम दान, अभयदान देना भी दान है। किसी
को धर्म का बोध कराना, तत्वज्ञान देना भी दान है। वह लोकोक्तर दान है। जिस ज्ञान से
आदमी राग से विराग, कल्याणों में अनुरक्त हो जाए, मैत्रीकी भावना पुष्ट हो जाए, जिसके
द्वारा तत्व का बोध हो जाए, ऐसा ज्ञान लौकोत्तर दान है। किसी साधु को शुद्ध दान देना
लौकोत्तर दान है। साधु शुद्ध हो, वस्तु कल्पनीय हो, देने वाला सूस्ता हो, ऐसी स्थिति
में दिया गया दान लौकोत्तर दान है।
किसी को अभयदान देना बड़ा दान है। मांसाहर
का त्याग करा देना अनेकों प्राणियों को अभयदान देना है। अहिंसा का व्रत अभयदान का उपक्रम
है। दान भले लौकिक हो, भले लोकोत्तर हो दान का अपना फल होता है। कभी निष्फल नहीं जाता
है। लौकोक्तर दान का आध्यात्मिक महत्व है। लौकिक दान का लौकिक महत्व है।
दान से आत्मतोष - दान देने से आदमी को
आत्म संतुष्टि मिलनी चाहिये। जीवन मे संतोष मिलता है तो सुख मिलता है।
मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुतविभा जी ने कहा कि
व्यक्ति स्वयं अपने आपको देखें। आत्म विकास हेतु स्वयं को देखना जरुरी है । जो व्यक्ति
अपना आत्म विश्लेषण करना सीख जाता है, वो आनन्द का जीवन जीता है। मुख्य नियोजिका जी
ने अपने (व्यक्तित्व) के लिये कहा कि व्यक्ति स्वयं को WATCH करे।
W -watch your words
A - watch your action
T - watch your thought
C - watch your character
H - watch your habit
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