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H.H. Acharya shri Mahashraman ji. |
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जून, राजविराज (नेपाल)। सिद्ध भगवान मुझे
उत्तम समाधि का वरदान प्रदान करें । हमारे जीवन में समाधि रहती है तो जीवन कितना उच्च
स्तर का हो जाता है और समाधि विहीन जीवन होता है तो वह आर्तध्यानमय या कष्टप्रद ही
जाता है। उपरोक्त पाथेय तेरापंथ के सरताज आचार्य श्री महाश्रमणजी ने राजविराज के भव्य
पंडाल में समुपस्थित जनमेदनी को संबोधित करते हुए फरमाया।
आर्हंत वाङ्गमय में उल्लेखित समाधि के प्रकारों
पर प्रकाश डालते हुए पूज्यप्रवर ने फ़रमाया कि समाधि के चार प्रकार बताए गए है- विनय
समाधि, श्रुत
समाधि, तप समाधि, आचार समाधि। विनय
करने से, ज्ञानाराधना करने से, तपस्या
से और आचार का सम्यक् पालन करने से समाधि मिलती है। चारित्र आत्मा, गुरु, शिक्षक, माता-पिता
आदि के प्रति विनय का भाव होना चाहिए। चारित्र आत्माओ को वंदन करने से नीच गोत्र कर्म
का क्षय और उच्च गोत्र कर्म का बंधन होता है। ऐसे विनय करने से समाधि मिलती है। ज्ञान
से भी चित्त में समाधि मिलती है जैसे आप रामायण का व्याख्यान सुनेंगे तो महापुरुषों
के जीवन चरित्र सुनने से श्रुत आराधना से भी समाधि शांति मिलती है। हम तपस्या को,
नवकारसी, उपवास, खाने में द्रव्यों की सीमा आदि करने से इन्द्रियातीत सुख मिलता है और तपस्या
में समाधि मिलती है। जिस आदमी का चरित्र अच्छा होता है उससे भी समाधि मिलती है।
साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभा ने सारगर्भित प्रेरणामयी
पाथेय प्रदान किया। मुख्य नियोजिका साध्वी विश्रुतविभाजी ने अपने वक्तव्य में समाधि
प्राप्ति के उपायों पर प्रकाश डाला। साध्वीवृंद के द्वारा सुमधुर गीतिका की प्रस्तुति
हुई। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनिश्री दिनेशकुमारजी ने किया।
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