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मन में अहिंसा की भावना रहे - आचार्य श्री महाश्रमण



1 जुलाई, इनरुवा(नेपाल). परमपूज्य महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी का आज का प्रवास इनरुवा(नेपाल) में हुआ। पूज्यप्रवर ने अपने दैनिक प्रवचन में फरमाया कि- व्यक्ति को स्वयं की आत्मा का कल्याण करने के साथ दुसरो की आत्मा के कल्याण का प्रयास भी करना चाहिए। व्यक्ति के मन में अहिंसा की भावना रहे। अहिंसा को पाले। इससे जीव शुद्धि को प्राप्त होता है।

ओछी नहीं, अच्छी वाणी:- 
आज चतुर्दशी के अवसर पर हाजरी के कार्यक्रम में पूज्यप्रवर ने प्रेरणा देते हुए कहा की हमे ओछी (छोटी बोली) वाणी का नहीं, अच्छी वाणी का प्रयोग करना चाहिए। वाणी अच्छी होती है तो मन में साता पहुँचती है।

साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभाजी ने अपने प्रेरणादायी उदबोधन में कहा की गुरु श्रद्धा व भक्ति से आकृष्ट होते है। भक्त की प्रतीक्षा पर भगवान को पधारना ही होता है और गुरु के दर्शन कर उन्हें जो प्रसन्नता होती है उसको शब्दों में नहीं बताया जा सकता है। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने प्रेरणा देते हुए कहा की आप लोग आचार्यप्रवर से प्राप्त ज्ञान को अपने ह्रदय में सहेजकर रखे ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी वह आह्लादकारी बन सकेगा।

कार्यक्रम में बालयोगी मुनि प्रिंसकुमारजी ने लेखपत्र का वाचन किया। उसके बाद सभी साधू साध्वियों ने लेखपत्र का वाचन किया। मुनि श्री महावीरकुमारजी ने "सत्संगत की महिमा अपरम्पार है" गीत का संगान किया।

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