Top Ads

सत्य साधना एवं अहिंसा आराधन हेतु अभय आवश्यक : आचार्य महाश्रमण

25 जुलाई. विराटनगर, नेपाल. परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी ने प्रवचन देते हुए फरमाया कि- जैन साध्वाचार में अहिंसा पर बहुत ध्यान दिया गया है. जैन साधू को अहिंसा का पालन करना होता है. व्यक्ति भय के कारण हिंसा में चला जाता है और झूठ भी बोलता है. भय एक कमजोरी है उससे मुक्त होने का प्रयास होना चाहिए. सच्चाई व अहिंसा की आरधना के लिए अभय आवश्यक है. व्यक्ति न स्वयं डरे, न दूसरों को डराए. सबके साथ मैत्री का प्रयोग हो. 

जनकल्याण प्रतिष्ठान व् एकल विद्यालय योजना 
पूज्यप्रवर ने जनकल्याण प्रतिष्ठान व् एकल विद्यालय योजना के कार्यक्रम में फरमाया कि- जीवन में शिक्षा का बड़ा महत्त्व है. आचार्य तुलसी व् आचार्य महाप्रज्ञजी ने जीवन विज्ञान की बात कही थी. बौद्धिक शिक्षा के साथ भावात्मक विकास भी होना चाहिए तभी संतुलन रह सकेगा. एक अच्छी पीढी का निर्माण हो सकेगा.
एकल विद्यालय योजना की ओर से केशरीसिंह दुगड़ ने विचार व्यक्त किए. 

जैन विद्या के प्रचार-प्रसार का कार्य महत्वपूर्ण:
समण संस्कृति संकाय, जैन विश्व भारती लाडनूं द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यक्रम के प्रथम दिन पूज्यवर ने फरमाया कि समण संस्कृति संकाय,द्वारा जैन विद्या के प्रसार का कार्य हो रहा है, यह संस्कार निर्माण का कार्य है.
समण संस्कृति संकाय की ओर से विभागाध्यक्ष मालचंद बेंगानी एवं  निदेशक निलेश बैद ने अपनी प्रस्तुति दी. संकाय पदाधिकारियों द्वारा संकाय का बुलेटिन पूज्य्प्रवर को निवेदित किया गया. 

साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने कहा कि- व्यक्ति तपस्या के क्षेत्र में पुरुषार्थ करें. चातुर्मास ज्ञान-दर्शन-चरित्र-तप के प्रयोग का विशिष्ट समय है. व्यक्ति चिंतनपूर्वक आगे बढे एवं अपने पुरुषार्थ का सम्यक नियोजन करें. 

साध्वियों द्वारा 'प्रभुवर का जप कर लो' गीतिका का संगान किया गया.  गुलाब बैद व उषा बरडिया ने गीत का संगान किया. 

Post a Comment

0 Comments