मानव जीवन में कुछ विशेष प्रयास कर जीवन को सार्थाक बनाने की प्रेरणा देते हुए परमपूज्य आचार्य श्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि- व्यक्ति को अच्छा बनने के लिए प्रतिस्त्रोतगामी बनना होता है. ज्यादातर लोग अनुस्त्रोतगामी होते है. पर जिन्होंने प्रतिस्त्रोत का लक्ष्य बनाया है उन्हें प्रतिस्त्रोत के लिए स्वयं को समर्पित कर देना होता है. भोग भोगना, इन्द्रिय सुख भोगना अनुस्त्रोतगामिता है. अनुस्त्रोत में चलना आसान है. भोग का त्याग, सुख का त्याग प्रतिस्त्रोतगामिता है.
मनुष्य का जीवन पारसमणि है. पर मनुष्य इस जीवन को भौतिक सुखों के लिए चलाता है. लेकिंन वह ध्यान दे तो इस मनुष्य शरीर से आत्मा का कल्याण कर सकता है.
साध्वीप्रमुखा श्री कनकप्रभाजे ने कहा कि - व्यक्ति अपनी समस्याओं का समाधान पाकर आगे बढ़ने का प्रयास करें. यह हम आप सभी का सौभाग्य है कि हमें ऐसे गुरु प्राप्त है जो समस्याओं का समाधान अपने प्रवचन से भी कर देते है. हम स्वयं समस्याओं का समाधान पाकर आने वाली पीढी के लिए मार्ग प्रशस्त करते रहे.
पूज्यप्रवर ने समणी मधुरप्रज्ञाजी के लिए फरमाया कि - ये इस क्षेत्र से जुडी हुई है. शान्ताबाई भी मुमुक्षु रूप में जुडी हुई है.
बच्छराज पारख थे विशिष्ट साधक : पूज्य्प्रवर ने मुनि श्री कुमारश्रमणजी के संसारपक्षीय परनाना श्री बच्छराज पारख के देहावसान हो जाने पर फरमाया कि- श्रद्धानिष्ठ श्रावक बच्छराज पारख विशिष्ट साधक व्यक्ति थे. गुरुकुल वास में आकर सेवा-उपासना करते. उनमें साधना थी. उनके जीवन से परिवारजनों को प्रेरणा मिलती रहे. सूरज बाई बच्छराजजी की भानजी है, जिनकी तीन संताने धर्मसंघ में दीक्षित है- मुनि कुमारश्रमणजी, साध्वी शशिप्रभाजी, साध्वी सुनंदाश्रीजी.
इस अवसर पर मुनिश्री कुमारश्रमणजी एवं साध्वीश्री सुनंदाश्रीजी ने अपने संसारपक्षीय परनाना के प्रति अपने विचार व्यक्त किए. मुनिश्री महावीरकुमारजी ने गीत का संगान किया .
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